Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 360
________________ (३) सत्ता योग्य प्रकृतियाँ १५८ अथवा १४८ - ज्ञानावरणीय - ५, दर्शनावरणीय - ९, वेदनीय - २, मोहनीय - २८, आयुष्य - ४, नाम - १०३/९३, गोत्र-२, अंतराय - ५। ११४३) नामकर्म में ६७ या १०३ या ९३ का भेद क्यों है? उत्तर : बंध-उदय-उदीरणा में वर्ण चतुष्क की चार प्रकृतियाँ ही होती है। परंतु सत्ता में वर्ण-चतुष्क के अवान्तर भेद गिनने से कुल २० प्रकृतियाँ होती है । ६७ में वर्णादि ४ के १६ अवान्तर भेद साथ में जोडने पर ६७ + १६ = ८३ प्रकृतियाँ होती है । पाँच शरीर के ५ बंधन तथा ५ संघातन भेद जोडने पर ९३ तथा ५ बंधन के स्थान पर १५ बंधन गिनने पर १०३ प्रकृतियाँ नाम कर्म की होती हैं । ११४४) कर्मप्रकृतियों के १५८ तथा १४८ भिन्न भिन्न भेद क्यों हैं ? उत्तर : नाम कर्म की ९३ प्रकृतियाँ गिनने पर १४८ व १०३ प्रकृतियाँ गिनने पर १५८ भेद होते हैं। ११४५) आठ कर्म की १५८ कर्मप्रकृतियों का नामोल्लेख करो ? उत्तर : (१) ज्ञानावरणीय - ५ (१) मतिज्ञानावरणीय, (२) श्रुतज्ञानावरणीय, (३) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मनःपर्यवज्ञानावरणीय, (५) केवलज्ञानावरणीय। (२) दर्शनावरणीय - ९ (१) चक्षुदर्शनावरणीय, (२) अचक्षु दर्शनावरणीय, (३) अवधिदर्शनावरणीय, (४) केवलदर्शनावरणीय, (५) निद्रा, (६) निद्रा-निद्रा, (७) प्रचला, (८) प्रचला-प्रचला, (९) स्त्यानर्द्धि । (३) वेदनीय - २ (१) शाता वेदनीय, (२) अशातावेदनीय । (४) मोहनीय-२८ (१) सम्यक्त्व मोहनीय, (२) मिश्र मोहनीय, (३) मिथ्यात्व मोहनीय, (४-७) अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माय लोभ, (८११) अप्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ, (१२-१५) प्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ, (१६-१९) संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, (२०) हास्य, (२१) रति, (२२) शोक, (२३) अरति, (२४) भय, (२५) जुगुप्सा, (२६) पुरूष वेद, (२७) स्त्रीवेद, (२८) नपुंसकवेद । - - - - - - - - - - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण ३५७

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