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देवानुपूर्वी ।
१०७३ ) कर्म की विविध अवस्थाएँ कौनसी हैं ?
उत्तर : कर्म की विविध अवस्थाएँ १० प्रकार से हैं - (१) बंध, (२) सत्ता, (३) उदय, (४) उदीरणा, (५) उद्वर्तना, (६) अपवर्तना, (७) संक्रमण, (८) उपशमन, (९) निधत्ति, (१०) निकाचन, (११) अबाधा | १०७४) बंध किसे कहते हैं ?
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उत्तर : आत्मा के साथ कर्म परमाणुओं का नीरक्षीरवत् एक हो जाना बंध है (इसके चारों भेदों का वर्णन बंधतत्त्व के प्रारंभ में देखे ।) १०७५) सत्ता किसे कहते हैं ?
उत्तर : बद्ध कर्म परमाणु अपनी निर्जरा अर्थात् क्षय पर्यन्त आत्मा से सम्बद्ध रहते हैं । इस अवस्था का नाम सत्ता है । इस अवस्था में कर्म अपना फल प्रदान न करते हुए विद्यमान रहते हैं ।
१०७६) उदय किसे कहते हैं ?
उत्तर : कर्म की फल प्रदान करने की अवस्था को उदय कहते हैं । उदय में आने वाले कर्म अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार फल देकर निर्जीण ( नष्ट) हो जाय तो फलोदय (विपाकोदय) है तथा फल को दिये बिना ही नष्ट हो जाय तो प्रदेशोदय कहलाता है ।
१०७७) उदीरणा किसे कहते हैं ?
उत्तर : नियत समय से पूर्व कर्म दलिकों को प्रयत्न विशेष से खींचकर उदय में लाना और भोगना उदीरणा है। जैसे समय से पूर्व ही प्रयत्न से आम आदि फल पकाये जाते हैं, वैसे ही साधना - तपादि के द्वारा आबद्ध कर्म को नियत समय से पूर्व भोगा जा सकता है । सामान्यतः जिस कर्म का उदय चालू है, उसके सजातीय कर्म की ही उदीरणा होती है १०७८) उद्वर्तना किसे कहते हैं ?
उत्तर : आत्मा के साथ बद्ध कर्मों की स्थिति और अनुभाग का निश्चय बन्ध के साथ प्रवहमान कषाय की तीव्रता तथा मन्दता के अनुसार होता है । उसके पश्चात् की स्थिति - विशेष अथवा भाव-विशेष के कारण उस
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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