Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 348
________________ १०५९) उत्तर प्रकृति किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्मों के अवान्तर भेदों को उत्तरप्रकृति कहते हैं । १०६०) कर्म की मूल प्रकृतियाँ कितनी व कौन कौन-सी है ? उत्तर : आठ - (१) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयुष्य, (६) नाम, (७) गोत्र, (८) अंतराय (इनका विवेचन पापतत्त्व में देखें ।) १०६१) कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ कितनी हैं ? उत्तर : कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १५८ है । १०६२) सर्वघाती कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो जीव के स्वाभाविक गुणों का सम्पूर्णरूप से घात करे, उसे सर्वघाती कर्म कहते हैं। १०६३) देशघाती कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो जीव के स्वाभाविक गुणों का देशत: घात करे, उसे देशघाती कर्म कहते हैं। १०६४) सर्वघाती कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? उत्तर : इक्कीस - (१) केवलज्ञानावरणीय, (२) केवलदर्शनावरणीय, (३-७) पांच निद्रा, (८-११) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया लोभ, (१२-१५) अप्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ, (१६-१९) प्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ, (२०) मिथ्यात्व मोहनीय, (२१) मिश्र मोहनीय । १०६५) देशघाती कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? उत्तर : छब्बीस - (१) मतिज्ञानावरणीय, (२) श्रुतज्ञानावरणीय, (३) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मनःपर्यव ज्ञानावरणीय, (५) चक्षुदर्शनावरणीय, (६) अचक्षु दर्शनावरणीय, (७) अवधि दर्शनावरणीय, (८-११) संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, (१२-२०) नौ नो-कषाय, (२१) सम्यक्त्व मोहनीय, (२२-२६) पांच अंतराय । १०६६) जीव विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म का फल शरीरादि में न होकर जीव को प्राप्त हो, उसे जीव ---------------- -------- श्री नवतत्त्व प्रकरण ३४५

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