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उत्तर : (१) प्रकृतिबंध - सौंठ, पीपल, कालीमिर्च से बनाया हुआ लड्डू
वायुनाशक होता है। जीरे आदि का मोदक पित्त नाशक होता है तथा कफापहारी मोदक कफ का शमन करता है, उसी प्रकार कोई कर्म आत्मा के ज्ञान गुण को आवृत्त करना है तो कोई दर्शन गुण को । कोई आत्मा के ज्ञान गुण का तो कोई अनंत शक्ति का घात करता है। इसप्रकार बंधकाल में भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रकृतियों का स्वभाव नियत होना प्रकृतिबंध है। (२) स्थितिबंध - कोई मोदक एक सप्ताह, कोई एक पक्ष तो कोई एक मास तक विकृत नहीं होता । उसके बाद खराब होता है । ठीक उसी प्रकार कोई कर्म ७० कोडाकोडी सागरोपम तो कोई २० कोडाकोडी सागरोपम तक जीव के साथ स्व-स्वरुप में कायम रहता है। उसके बाद फल प्रदान कर उस कर्म का नाश होता है । इस काल मर्यादा को स्थितिबंध कहते है। (३) अनुभाग बंध - जैसे कोई लड्डू अधिक या कम मीठा होता है, या अल्पाधिक कडवा होता है, वैसे ही कोई कर्मपुद्गलों में शुभ रस अधिक या कम होता है अथवा अशुभ रस हीनाधिक होता है। कर्मबंध के समय शुभाशुभ तथा तीव्र-मंद रस का जो बंध होता है, वह अनुभाग (रस) बन्ध है।। (४) प्रदेशबंध - जैसे कोई लड्डू ५० ग्राम तो कोई १०० ग्राम का अथवा इससे भी अधिक होता है, उसी प्रकार बन्ध के समय किसी
कर्म के बहुत अधिक तो किसी के अल्प प्रदेशों का बन्ध होता है । १०२२) आठों कर्मों का प्रदेश बन्ध समान है या असमान ? उत्तर : असमान । आयु के सबसे अल्प प्रदेशों का बंध होता है। नाम-गोत्र
के उससे विशेष किन्तु परस्पर तुल्य, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय के उससे विशेष किन्तु परस्पर तुल्य, मोहनीय के उससे विशेष
तथा वेदनीय के सबसे विशेष प्रदेशों का बन्ध होता है । १०२३) बन्ध के हेतु (कारण) क्या है ? ------------------------
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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