Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 298
________________ उत्तर : वर्षाकाल में डांस, मच्छर, खटमल आदि का उपद्रव होने पर भी धुएँ, औषध आदि का प्रयोग न करना, न उन जीवों पर द्वेष करना बल्कि उनके डंक की वेदना को समभावपूर्वक सहन करना, दंश परीषह कहलाता है । ७८४) अचेल परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : अपने पास रहे हुए अल्प तथा जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में संयम निर्वाह करना, बहुमूल्य वस्त्रादि लेने की इच्छा न करना, अत्यल्प मिले तो भी दीनता का विचार न करना, अचेल परीषह है । ७८५) अरति परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : मन के अनुकूल साधनों के न मिलने पर आकुल-व्याकुल न होना, उदास न होना, संयम पालन में अरुचि पैदा न होना, धर्मक्रिया को करते हुए उल्लासभाव रहना, अरति परीषह है । ७८६ ) स्त्री परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : स्त्रियों को संयम मार्ग में विघ्न का कारण समझकर सराग दृष्टि से न देखना, उनके अंग- उपांग, कटाक्ष, हाव-भाव पर ध्यान न देना, विकार भरी दृष्टि से न देखना, ब्रह्मचर्य में दृढ रहना, स्त्री परीषह है । ७८७) चर्या परीषह किसे कहते हैं ? थकावट उत्तर : चर्या अर्थात् चलना, विहार करना । चलने में जो श्रान्ति होती है तथा विहार के समस्त कष्टों को समभावपूर्वक सहन करना तथा मासकल्प की मर्यादानुसार विहार करना, चर्या परीषह है । ७८८ ) निषद्या परीषह किसे कहते हैं ? - उत्तर : श्मशान, शून्य गृह, गुफा आदि में ध्यान अवस्था में मनुष्य पशुदेव द्वारा किसी भी प्रकार का अनुकूल अथवा प्रतिकूल उपसर्ग आने पर उससे बचने के लिये उस स्थान को छोडकर न जाना बल्कि उन उपसर्गों को दृढतापूर्वक सहन करना, निषद्या परीषह है । ७८९) शय्या परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : सोने के लिये उंची-नीची, कठोर जमीन मिलने पर भी मन में किसी श्री नवतत्त्व प्रकरण २९५

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