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९०९ ) वृत्तिसंक्षेप किसे कहते हैं ?
उत्तर : द्रव्यादि चार भेदों से मनोवृत्ति का संक्षेप अर्थात् द्रव्य-क्षेत्र-काल तथा
भाव से भिक्षा का अभिग्रह करना वृत्ति संक्षेप है । अभिग्रहपूर्वक भिक्षा लेने से वृत्ति का संकोच होता है । इसका अपर नाम भिक्षाचरी भी है ।
९१०) द्रव्य. भिक्षाचरी के कितने भेद हैं ?
उत्तर : २६ भेद हैं- (१) उक्खित्त चरए, (२) निक्खित्त चरए, (३) उक्खित्त निक्खित्त चरए, (४) निक्खित्त उक्खित्त चरए, (५) वट्टिज्जमाण चरए, (६) साहरिज्जमाण चरए, (७) उवणीअ चरए, (८) अवणीअ चरए, (९) उवणीअ अवणीअ चरए, (१०) अवणीअ उवणीअ चरए, (११) संसट्ट चरए, (१२) असंसट्ठ चरए, (१३) तज्जाइ संसट्ठ चरए, (१४) अन्नाय चरए, (१५) मोण चरए, (१६) दिट्ठ लाभए, (१७) अदिट्ठ लाभए, (१८) पुट्ठ लाभए, (१९) अपुट्ठ लाभए, (२०) भिक्ख लाभए, (२१) अभिक्ख लाभए, (२२) अन्नगिलाए, (२३) उवणिहिए, (२४) परिमित पिंडवत्तिए, (२५) सुद्धेसणिए, (२६) संखादत्तीए (औप. स्था.) ९११) क्षेत्र भिक्षाचरी के कितने भेद हैं ?
उत्तर : आठ । इन आठ को गोचराग्र गोचरी प्रधान कहा है। गो-गाय की तरह, चर्या, इधर-उधर भ्रमण कर कम-कम मात्रा में सभी जगह से प्रासुक कल्पनीय आहार लेना ।
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(१) पेटिए - चारों कोणों के घरों से आहार लेना ।
(२) अद्ध पेटि दो कोणों के घरों से आहार लेना ।
(३) गोमुत्ते - गोमूत्र की तरह टेढ़े-मेढे पंक्तिबद्ध घरों से आहार लेना । (४) पतंगिए - पतंग उडने के समान फुटकल घरों से आहार लेना । (५) अभितर संखावत्त- शंख आवर्त्त चक्र, घेरे की भांति नीचे के घर से फिर ऊपर के घर से आहार लेना ।
(६) बाहिर संखावत्त- पहले ऊपर के घर से फिर नीचे के घर से आहार लेना ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण