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उत्तर : चार - (१) इन्द्रिय प्रतिसंलीनता, (२) कषाय प्रतिसंलीनता, (३) योग
प्रतिसंलीनता, (४) विविक्त प्रतिसंलौनता । ९२५) इन्द्रिय प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? उत्तर : इन्द्रियों को अपने विषयों की ओर जाने से रोकना तथा इन्द्रियों द्वारा
गृहित विषयों में रागद्वेष न करना । इसके पांच भेद हैं - (१) श्रोत्रेन्द्रिय प्रतिसंलीनता, (२) चक्षुरिन्द्रिय प्रतिसंलीनता, (३) घ्राणेन्द्रिय प्रतिसंलीनता, (४) रसनेन्द्रिय प्रतिसंलीनता, (५) स्पर्शनेन्द्रिय
प्रतिसंलीनता । ९२६ ) कषाय प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? उत्तर : क्रोध, मान, माया, लोभ का उदय न होने देना तथा उदय में आये हुए ___कषाय को निष्फल बना देना । इसके क्रोधादि चार भेद हैं । ९२७) योग प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? उत्तर : मन, वचन तथा काया, इन तीनों योगों की अशुभ, अकुशल प्रवृत्तियों
को रोकना तथा शुभ व कुशल प्रवृत्तियों को संपादित करना, योग
प्रतिसंलीनता है। ९२८) विविक्त प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? उत्तर : स्त्री, पुरुष, नपुंसक, पशु के संसर्गवाले स्थान को छोडकर निर्दोष तथा
संयम के अनुकूल स्थान में रहना, विविक्त प्रतिसंलीनता है । ९२९) आभ्यंतर तप किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस तप का सम्बन्ध आत्मभाव से हो, जिससे बाह्य शरीर नहीं तपता
परन्तु आत्मा तथा मन तपते हैं, जो अंतरंग प्रवृत्तिवाला है, उसे आभ्यंतर तप कहते हैं।
. छह प्रकार के आभ्यन्तर तप का विवेचन .९३०) आभ्यंतर तप के कितने भेद हैं ? उत्तर : छह - (१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) वैयावृत्य, (४) स्वाध्याय, (५)
ध्यान, (६) कायोत्सर्ग।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण