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(५) कीइकम्मे - गुरु को वन्दना करना । (६) सक्कारे - गुरु आवे तब स्तवना - सत्कार करना । (७) सम्माणे - गुरु को सम्मान देना। (८) एंतस्स अणुगच्छणया - गुरु आवे तब सामने जाना । (९) ठियस्स पज्जुवासणया - गुरु ठहरे तब सेवाभक्ति करना । (१०) गच्छंतस्स पडिसंसाहमाणा - गुरु जब जावे तब छोडने जाना । उत्तराध्ययन के ३० वें अध्ययन में विनय तप की व्याख्या में शुश्रूषा
विनय के ५ भेद ही बताये हैं। ९४०) अनाशातना विनय किसे कहते हैं ? उत्तर : देव, गुरु की आशातना न करना अनाशातना विनय है । इसके ४५
भेद हैं - (१) अरिहंत, (२) धर्म, (३) आचार्य, (४) उपाध्याय, (५) स्थविर, (६) कुल, (७) गण, (८) संघ, (९) सांभोगिक तथा (१०) साधर्मिक एवं पांच ज्ञान, ये कुल १५ । इन १५ की आशातना का त्याग करना, इन १५ का भक्ति, बहुमान करना, इन १५ का गुणानुवाद,
स्तवना करना, यह ४५ प्रकार का अनाशातना विनय है। ९४१) चारित्र विनय किसे कहते हैं ? उत्तर : सामायिकादि पांचों चारित्र की सद्दहणा (श्रद्धा), स्पर्शना, आदर, पालन
तथा प्ररुपणा करना चारित्र विनय है। पांच चारित्री का उपरोक्त पंचविध
विनयरुप इसके पांच भेद हैं । ९४२) योग विनय किसे कहते हैं ? उत्तर : दर्शन तथा दर्शनी का मन, वचन व काया, इन तीनों योगों से विनय
करना योग विनय है। ९४३) मनोयोग विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो (१) प्रशस्त मनविनय, (२) अप्रशस्त मनविनय । ९४४) अप्रशस्त मन विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : १२ भेद हैं।
(१) सावधक मन - मन का पापरुप सावध होना ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण
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