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९४८) अप्रशस्त काय विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : प्रशस्त भेद के विपरीत लक्षण वाले ७ भेद अप्रशस्त कायविनय के हैं। ९४९) उपचार विनय किसे कहते हैं ? उत्तर : गुरुजनों के प्रति शिष्ट, श्रेष्ठ तथा योग्य व्यवहार करना उपचार विनय
९५०) उपचार विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : सात - (१) अभ्यासासन - गुरुजनों के निकट रहना । (२)
परछंदानुवर्तन - उनकी इच्छानुसार अनुसरण करना । (३) कार्यहेतु - पूर्व उपकार को मानकर कार्य करना । (४) कृतप्रतिकृतिता - ज्ञान आदि के फल की इच्छा से आचार्य आदि का कार्य करना । (५) आर्तगवेषणा - दुःखी, रोगादि से पीडित की सेवा का विचार रखना । (६) देशकालज्ञता - देश, काल का ज्ञान रखना । (७) सर्वअर्थानुमति
- सर्व अर्थों में अनुकूल रहना । ९५१) वैयावृत्य तप किसे कहते हैं ? उत्तर : गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा करना वैयावृत्य तप है। .. ९५२) वैयावृत्यतप के कितने भेद हैं ? उत्तर : १० भेद हैं - (१) आचार्य - तीर्थंकर की अनुपस्थिति में जो तीर्थंकर
के समान शासन के नायक होते हैं, व्रत तथा आचार ग्रहण कराते हैं व आचारवानों की रक्षा करते हैं, वे ३६ गुणों से युक्त संघनायक आचार्य कहलाते हैं । उनकी वैयावृत्य करना । (२) उपाध्याय - जो स्व-पर सिद्धान्त के ज्ञाता होते हैं, श्रुत-शास्त्र का अध्ययन करते हैं व वाचना देते हैं, वे २५ गुणों से युक्त उपाध्याय कहलाते हैं । उनकी सेवा करना । (३) स्थविर - जो ज्ञान में, दीक्षा में, आयु में बडे होते हैं, वे क्रमश: ज्ञान स्थविर, पर्याय स्थविर, वयः स्थविर कहलाते हैं । उनकी सेवा करना । (४) तपस्वी - उग्र तपाचरण करनेवाले साधु की सेवा करना ।
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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