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(५) ग्लान - व्याधिग्रस्त, रोगी साधु की सेवा करना । (६) शैक्षक - नवदीक्षित होकर शिक्षा प्राप्त करने वाले मुनि की सेवा करना । (७) गण - भिन्न-भिन्न आचार्यों के शिष्य यदि परस्पर सहाध्यायी होने से समानवांचना वाले हो तो उनका समुदाय गण कहलाता है। उनकी सेवा करना । (८) कुल - एक ही दीक्षाचार्य (गुरु) का शिष्य-परिवार कुल है । उनकी सेवा करना । (९) संघ - धर्म का अनुयायी समुदाय संघ है। अर्थात् एक परम्परा की आराधना करने वाले व्यक्तियों का समुदाय संघ है। साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रुप चतुर्विध संघ की वैयावृत्य करना । (१०) साधर्मिक - ज्ञान, आचारादि गुणों में जो समान हो, वह साधर्मिक
है। उनकी सेवा करना। ९५३) स्वाध्याय तप किसे कहते हैं ? उत्तर : अस्वाध्याय काल यलकर मर्यादापूर्वक शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन
आदि करना स्वाध्याय तप है। ९५४) स्वाध्याय तप के कितने भेद हैं ? उत्तर : पांच - (१) वांचना, (२) पृच्छना, (३) परावर्तना, (४) अनुप्रेक्षा, (५)
धर्मकथा । ९५५) वांचना किस कहते हैं ? उत्तर : सूत्र-अर्थ पढना तथा शिष्य को पढाना वांचना है। ९५६) पृच्छना किसे कहते हैं ? उत्तर : वांचना ग्रहण करके उसमे शंका होने पर पुनः प्रश्न पूछकर शंका का
समाधान करना पृच्छना है। ९५७) परावर्तना किसे कहते हैं ? उत्तर : पढे हुए की पुनरावृत्ति करना, परावर्तना है। ९५८) अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
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श्री नवतत्त्व प्रकरण