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न करना, शक्ति के होने पर भी उसका उपयोग न करना क्षमाधर्म हैं। ८१०) क्षमाधर्म के कितने प्रकार है ? उत्तर : पांच प्रकार है -
(१) उपकार क्षमा - किसी ने हमारा नुकसान किया है, तो भी "इसने अमुक समय पर मुझ पर उपकार भी तो किया था' ऐसा जानकर सहनशीलता रखना, उपकार क्षमा है। (२) अपकारक्षमा - यदि में क्रोध करुंगा तो वह हानि पहुँचायेगा, ऐसा सोचकर क्षमा करना अपकार क्षमा है। (३) विपाकक्षमा – यदि क्रोध करुंगा तो कर्म बन्ध होगा, ऐसा सोचकर क्षमा रखना विपाक क्षमा है। (४) वचन क्षमा - शास्त्र में क्षमा रखने के लिये कहा है, ऐसा सोचकर क्षमा रखना वचन क्षमा है । (५) धर्मक्षमा - आत्मा का धर्म क्षमा ही है, ऐसा सोचकर क्षमा रखना
धर्मक्षमा है। ८११) मार्दव धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : नम्रता रखना अथवा मान का त्याग करना । जाति, कुल, रुप, ऐश्वर्य,
तप, ज्ञान, लाभ और बल, इन आठों मद में से किसी भी प्रकार का
मद न करना, मार्दव धर्म कहलाता है । ८१२) आर्जव धर्म किसे कहते हैं ? .. उत्तर : आर्जव अर्थात् सरलता । कपट रहित होना, या माया, दम्भ, ठगी आदि
का सर्वथा त्याग करना, आर्जव धर्म है । ८१३) मुक्ति धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : निर्लोभता । लोभ को जीतना व पौद्गलिक पदार्थो पर आसक्ति न रखना ___मुक्ति धर्म है। ८१४) तप धर्म किसे कहते हैं ? । उत्तर : इच्छाओं का रोध (रोकना) करना ही तप है। तप को संवर तथा निर्जरा,
दोनों तत्त्वों के भेद में गिना गया है, क्योंकि इससे संवर तथा निर्जरा,
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श्री नवतत्त्व प्रकरण