Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 312
________________ उत्तर : दो - (१) विशुद्धयमान (२) संक्लिश्यमान । ८५४ ) विशुद्धयमान सूक्ष्म संपराय चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : क्षपक श्रेणी अथवा उपशम श्रेणी पर चढनेवाले जीव को १० वे गुणस्थानक में विशुद्ध चढती दशा के अध्यवसाय होने से उनका सूक्ष्म संपराय चारित्र विशुद्धयमान कहलाता है । ८५५) संक्लिश्यमान सूक्ष्म संपराय चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : उपशम श्रेणी से गिरते हुए जीव के परिणाम संक्लेश युक्त होने से उनका चारित्र संक्लिश्यमान सूक्ष्म संपराय चारित्र कहलाता है । ८५६ ) यथाख्यात चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : कषाय उदय का सर्वथा अभाव होने से अतिचार रहित एवं पारमार्थिक रुप से विशुद्ध एवं प्रसिद्ध चारित्र यथाख्यात चारित्र है । ८५७) यथाख्यात चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) छद्मस्थ यथाख्यांत (२) केवली यथाख्यात । ८५८ ) छद्मस्थ यथाख्यात चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) उपशांत मोह यथाख्यात । (२) क्षीण मोह यथाख्यात । ८५९) उपशांत मोह यथाख्यात चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : ग्यारहवें गुणस्थानक में मोहनीय कर्म के उदय का सर्वथा अभाव हो जाता है और यह कर्म सत्ता में होता है, उस समय का चारित्र उपशांत मोह यथाख्यात चारित्र कहलाता है । ८६०) क्षीण मोह यथाख्यात चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : १२वें, १३वें, १४वें गुणस्थानक में मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने के कारण उनका चारित्र क्षीण मोह यथाख्यात चारित्र कहलाता है । ८६१ ) छद्मस्थ यथाख्यात चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : ११ वें, १२ वें गुणस्थानक में उपरोक्त दोनों प्रकार का चारित्र छद्मस्थ यथाख्यात चारित्र कहलाता है । ८६२) केवली यथाख्यात चारिष किसे कहते है ? उत्तर : केवलज्ञानी के चारित्र को केवली यथाख्यात चारित्र कहते हैं । श्री नवतत्त्व प्रकरण ३०९

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