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८६३) केवली यथाख्यात चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) सयोगी केवली - १३ वें गुणस्थानक में रहे हुए केवली
का चारित्र सयोगी केवली यथाख्यात चारित्र है । (२) अयोगी केवली - १४ वें गुणस्थानक में रहे हुए केवली का चारित्र अयोगी केवली
यथाख्यात चारित्र है। ८६४) संवर तत्त्व को जानने का उद्देश्य लिखो । उत्तर : संवर के ५७ भेदों का स्वरूप जानकर विचार करें कि जिस कर्म के
संबंध से जीव संसार मे परिभ्रमण कर रहा है, उस कर्म के बंध को रोकना, यही संवर है, अतः यह स्व-स्वरूप की प्राप्ति का कारणभूत होने से उपादेय है, ऐसा विचार कर अविरति-देशविरति को तथा देशविरति-सर्वविरति को प्राप्त करे । यही कर्मों को रोकने का एक उत्तम साधनरूप है, यदि यह नहीं होता तो जीव कर्मों को रोक नहीं पाता और उसका उद्धार नहीं होता । इस प्रकार अलग अलग क्रिया द्वारा अपनी आत्मा में लगे कर्मरूपी चुंबक से अन्य कर्मों के खींचकर आनेवाले आश्रव को रोककर अन्ततः स्वस्वरूप की प्राप्ति कर मोक्ष को प्राप्त करे । यही संवर तत्त्व को जानने का मुख्य उद्देश्य है ।
निर्जरा तत्त्व का विवेचन ८६५) निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : आत्मा पर लगे हुए कर्मरुपी मल का देशतः दूर होना निर्जरा है। अथवा
जीव रुपी कपडे पर लगे हुए कर्म रुपी मेल को ज्ञान रुपी पानी, तप
संयम रुपी साबुन से धोकर दूर करना भी निर्जरा कहलाता है। ८६६) निर्जरा के २ भेद कौन से हैं ? उत्तर : (१) अकाम निर्जरा, (२) सकाम निर्जरा । ८६७) अकाम निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर : बिना इच्छा एवं बिना सोच-समझ व विवेक के भूख, प्यास आदि दुःखों
को सहन करने से जो आंशिक कर्मक्षय होता है, उसे अकाम निर्जरा
___कहते हैं।
श्री नवतत्त्व प्रकरण