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(१२) धर्म स्वाख्यात भावना भाते हुए - धर्मरुचि अणगार को।
पांच प्रकार के चारित्रों का विवेचन ८३७) चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : चय यानि आठ कर्म का संचय-संग्रह, उसे रित्त अर्थात् रिक्त करे, उसे
चारित्र कहते हैं । आत्मिक शुद्ध दशा में स्थिर रहने का प्रयत्न करना
ही चारित्र है। ८३८) चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर : पांच - (१) सामायिक चारित्र, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (३) परिहार
विशुद्धि चारित्र, (४) सूक्ष्म संपराय चारित्र, (५) यथाख्यात चारित्र । ८३९) सामायिक चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : सम् - समता भावों का, आय - लाभ हो जिसमें, वह सामायिक है।
समभाव में स्थित रहने के लिये संपूर्ण अशुद्ध या सावद्य प्रवृत्तियों का त्याग करना सामायिक चारित्र है। इसके २ भेद हैं - (१) इत्वरकथिक,
(२) यावत्कथिक । ८४०) इत्वरकथिक सामायिक चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : इत्वर कथिक अर्थात् अल्पकालीन । जिसमें भविष्य में दुबारा करने
का व्यपदेश हो, उसे इत्वरकथिक सामायिक चारित्र कहते हैं। श्रावक के ४८ मिनट (२ घडी) तथा दिन व रात पौषध में, प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के शासन में छोटी दीक्षा से बडी दीक्षा तक का चारित्र इत्वरकथिक है। यह जघन्य ७ दिन, मध्यम ४ मास तथा उत्कृष्ट छह मास का होता है। यह चारित्र केवल भरत तथा ऐरावत क्षेत्र के प्रथम
व चरम तीर्थंकरों के शासन में ही दिया जाता है। ८४१) यावत्कथिक सामायिक चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : यावज्जीवन की सामायिक यावत्कथिक सामायिक चारित्र कहलाती है।
प्रथम व अंतिम तीर्थंकर को छोडकर बीच के २२ तीर्थंकरों के साधुओं एवं महाविदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के साधुओं के दीक्षा के प्रारंभ से जीवन
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श्री नवतत्त्व प्रकरण