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प्रत्याख्यानिकी। जो पदार्थ कभी उपयोग में नहीं आते, उन पदार्थों का भी यदि प्रत्याख्यान न हो तो तत्सम्बन्धी कर्म का आश्रव अवश्य होता है। जैसे पूर्वभव में छोडे हुए शस्त्रों से होने वाली हिंसा तथा पूर्वभव में संग्रहित परिग्रह के ममत्व का जीव को कर्मबंध इस भव में भी आता है। अतः
मृत्यु के समय समस्त सांसारिक साधनों का त्याग कर देना चाहिए । ७०१) दृष्टिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : जीव तथा अजीव को रागादि से देखना दृष्टिकी क्रिया है। ७०२) स्पृष्टिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : जीव तथा अजीव को रागादि से स्पर्श करना स्पृष्टिकी क्रिया है अथवा
रागादि भाव से प्रश्न करना प्राश्निकी क्रिया है । ७०३) प्रातित्यकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : जीव तथा अजीव वस्तु (बाह्य वस्तु) के निमित्त से राग-द्वेष करने पर
- जो क्रिया लगती है, उसे प्रातित्यकी क्रिया कहते है । ७०४) प्रातित्यकी क्रिया के दो भेद लिखो । उत्तर : प्रातित्यकी क्रिया के दो भेद हैं -
(१) जीव प्रातित्यकी क्रिया : दूसरों के नौकरों आदि तथा हाथी, घोडे आदि की संख्या देखकर राग-द्वेष करना । (२) अजीव प्रातित्यकी क्रिया : दूसरों के आभूषणादि देखकर राग
द्वेष करना । ७०५) सामंतोपनिपातिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : अपने वैभव, ऐश्वर्य आदि की लोगों द्वारा की जाती प्रशंसा को सुनकर
प्रसन्न होना अथवा घी, तेल आदि के पात्र खुले रहने पर उसमें संपातिम
जीवों का गिरकर विनाश होना, सामंतोपनिपातिकी क्रिया है । ७०६) सामंतोपनिपातिकी क्रिया के दो भेद लिखो । उत्तर : सामंतोपनिपातिकी क्रिया के दो भेद हैं -
(१) जीव सामंतोपनिपातिकी क्रिया : घोडे हाथी आदि लाने पर अन्य श्री नवतत्त्व प्रकरणश्री नवतत्त्व प्रकरण
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