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(८) मान दोष - अभिमान से अपने को लब्धिधारी बताकर आहार लेना। (९) माया दोष - वेष बदलकर आहार लेना । (१०) लोभ दोष - स्वादिष्ट भोजन मिले, वहाँ बार बार जाना । (११) संस्तव दोष - गुणों की प्रशंसा करके आहार लेना । (१२) विद्या दोष - चमत्कारिक विद्या प्रयोग सिखाकर आहार लेना । (१३) मंत्र दोष – मंत्र प्रयोग से आहार लेना । (१४) चूर्ण दोष - अंजन आदि के प्रयोग से अदृश्य होकर गौचरी लेना। (१५) योग दोष - योग साधना से आकृष्ट करके या राजवशीकरण की सिद्धि बताकर आहार लेना । (१६) मूलकर्म दोष - गर्भाधान, गर्भपात, गर्भस्तंभन आदि के उपाय
बताकर आहार लेना। ७५७ ) ग्रहणैषणा किसे कहते हैं ? उत्तर : आहार - १० दोष रहित ग्रहण करना ग्रहणैषणा है। ७५८) ग्रहणैषणा के १० दोष कौन-से हैं ? उत्तर : (१) शंकितदोष - अशुद्ध होने की शंका होने पर भी आहार लेना ।
(२) म्रक्षित दोष - सचित्त से लिप्त हाथ, भाजन से आहार लेना । (३) निक्षिप्त दोष - सचित्त वस्तु से स्पृष्ट आहार लेना । (४) पिहित दोष - सचित्त से ढंकी वस्तु लेना । (५) साहत दोष - सचित्त बर्तन से पदार्थ निकालकर उसी में अचित्त पदार्थ डालकर दे, वह आहार लेना। (६) दायक दोष - दान देने में अयोग्य व्यक्ति-अन्ध, गर्भवती से आहार लेना। (७) उन्मिश्र दोष - सचित्त-अचित्त मिश्रित वस्तु लेना । (८) अपरिणत दोष - अचित्त हुए बिना वस्तु लेना । (९) लिप्त दोष - दूध-दही आदि लेपकृत द्रव्य लेना । (१०) छर्दित दोष - बहराते हुए नीचे गिरने पर भी आहार लेना ।
---------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
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