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उत्तर : वस्त्र, पात्र, आसन, शय्या, संस्तारक आदि संयम के उपकरण तथा
ज्ञानोपकरणों को उपयोगपूर्वक प्रमार्जना करके उठाना और रखना आदान समिति है। इसका अपर नाम आदान-भंड-मत्त-निक्षेपणा समिति है। आदान अर्थात् ग्रहण करना । भंड-मत्त - पात्र-मात्रक आदि को
जयणापूर्वक । निक्षेपणा - रखना।। ७६४) पारिष्ठापनिका समिति किसे कहते हैं ? उत्तर : परिष्ठापना (त्याग करना) के १० दोषों का त्याग करते हुए लघुनीति,
बडीनीति, थूक, कफ, अशुद्ध आहार, निरुपयोगी उपकरणों का विधि तथा जयणापूर्वक त्याग करना पारिष्ठापनिका समिति है। इसका दूसरा नाम उच्चार प्रस्त्रवण खेल जल्ल सिंघाण पारिष्ठापनिका समिति हैं। उच्चार - बडीनीत (मल) प्रस्रवण - मूत्र खेल - श्लेष्म (कफ) जल्ल - शरीर का मैल सिंघाण - नाक का मैल
पारिष्ठापनिका - पस्ठना, उत्सर्ग करना या त्याग करना । ७६५) परिष्ठापना के १० नियम/सिद्धान्त कौन-से हैं ? उत्तर : (१) जहाँ कोई आता हो, देखता हो, वहाँ न परठे ।
(२) जहाँ आत्म विराधना या पर विराधना हो, वहाँ न परठे । (३) ऊंची-नीची भूमि हो, वहाँ न परठे अर्थात् समतल भूमि पर परखें। (४) पोली भूमि, घास, धान्य, पत्ते तथा किसी वस्तु के ढेर पर न परठे । (५) अचित्त / प्राणी रहित भूमि पर परटें । (६) विस्तृत अचित्त भूमि पर परठे, जिससे पदार्थ सचित्त भूमि पर न जाय । (७) चार अंगुल प्रमाण गहरी भूमि पर परटें। (८) ग्राम आदि (दृष्टिगोचर स्थान) के पास न परटें ।
(९) चूहे आदि के बिलों पर न परटें। -------------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण