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(६) प्राभृतिक आहार - साधु आये, जानकर बना विशेष आहार लेना । (७) प्रादुष्करण आहार - अंधेरे से उजाले में अथवा अंधेरे में प्रकाश
करके आहार लेना। (८) क्रीत आहार - साधु के लिये खरीदा हुआ आहार लेना । (९) प्रामृत्य आहार - साधु के लिये उधार लाया हुआ आहार लेना। (१०) परावृत्य आहार - साधु के निमित्त पडौसी अथवा अन्य को अपनी वस्तु देकर दूसरी वस्तु लाकर देना । (११) अभ्याहृत आहार - सामने से लाया हुआ आहार लेना। (१२) उद्भिन्न आहार - लेप, पेक आदि खोलकर लाया आहार लेना। (१३) मालोपहृत आहार - उपर से निसरणी, छींके आदि से उतारकर या भूमिगृह से निकालकर लाया आहार लेना । (१४) अछिद्य आहार - बलात् । छिनकर लाया हुआ आहार लेना । (१५) अनिसृष्ट आहार - भागीदारी की चीज को उसकी इच्छा या आज्ञा के बिना देना। (१६) अध्वपूरक आहार - साधु के आने पर अधिक बनाया आहार
लेना। ७५६) उत्पादना के १६ दोष कौनसे हैं ? उत्तर : (१) धात्री दोष - गृहस्थ के बालकों को स्नेह देकर या खाना देकर
आहार लेना। (२) दूती पिंड दोष - परस्पर समाचार बताकर आहार लेना । (३) निमित्त पिंड दोष - ज्योतिष की बातें बताकर आहार लेना । (४) आजीव दोष - अपने कुल आदि का परिचय देकर आहार लेना । (५) वनीपक पिंडदोष - भिखारी की तरह दीन-वचन कहकर आहार लेना। (६) चिकित्सा दोष - रोगापहार करके आहार लेना । (७) क्रोध दोष - शाप आदि का भय बताकर या क्रोधपूर्वक आहार लेना।
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तत्त्व प्रकरण