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(१८) वैदारणिकी क्रिया १ से ९ गुणस्थान तक (१९) अनाभोगिकी क्रिया १ से १० गुणस्थान तक (२०) अनवकांक्ष प्रत्ययिकी क्रिया १ से ९ गुणस्थान तक (२१) प्रायोगिकी क्रिया १ से ५ गुणस्थान तक (२२) सामुदानिकी क्रिया १ से १० गुणस्थान तक (२३) प्रेमिकी क्रिया १ से १० गुणस्थान तक (२४) द्वैषिकी क्रिया १ से ९ गुणस्थान तक
(२५) ईर्यापथिकी क्रिया ११ से १३ गुणस्थान तक ७२२) आश्रव तत्त्व जानने का उद्देश्य लिखो। उत्तर : आश्रव यानि कर्मों का आना । आश्रव के ४२ भेदों का ज्ञान कर स्व
स्वभाव में आने के लिए इनका त्याग करें, परंतु गृहस्थावस्था में पुण्याश्रव भव-अटवी से पार उतारने में सहायभूत हो सकता है, अतः इस का उपयोगपूर्वक स्वीकार कर आत्मस्वरुप की प्राप्ति करना, इस तत्त्व को जानने का उद्देश्य है।
संवर तत्त्व का विवेचन ७२३) संवर किसे कहते है ? उत्तर : आश्रव का निरोध ही संवर है । अर्थात् जिन क्रियाओं से आते हुए
कर्म रूक बंद हो जाये. वह क्रिया संवर कहलाती है। ७२४) संवर के २० भेद कौन-से हैं ? उत्तर : (१) सम्यक्त्व संवर - सुदेव, सगरु, सधर्म पर श्रद्धा रखना ।
(२) व्रत संवर - पच्चक्खाण करना । (३) अप्रमाद संवर - ५ प्रकार का प्रमाद नहीं करना । (४) अकषाय संवर - २५ कषायों का सेवन नहीं करना । (५) योग संवर - मन, वचन, काया की शुभप्रवृत्ति । (६) दया संवर - जीवों की हिंसा नहीं करना । (७) सत्य संवर - झूठ नहीं बोलना ।
_(८) अचौर्य संवर - चोरी नहीं करना । ____ श्री नवतत्त्व प्रकरण
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