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उत्तर : जहाँ असि-तलवार आदि शस्त्र, मसि - स्याही अर्थात् पढने-लिखने का कार्य, कसि - कृषि खेती के द्वारा मनुष्य अपना जीवन निर्वाह करते हैं, उसे कर्मभूमि कहते हैं । इन पन्द्रह कर्मभूमियों में ही तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव होते हैं ।
२७७) तीस अकर्मभूमि के क्षेत्र कौन से हैं ?
उत्तर : ५ देवकुरु, ५ उत्तरकुरु, ५ हरिवर्ष, ५ रम्यकवर्ष, ५ हैमवतवर्ष, ५ हैरण्यवतवर्ष, ये तीस अकर्मभूमि के क्षेत्र हैं ।
२७८ ) अकर्मभूमि किसे कहते हैं ?
उत्तर : जहाँ असि-मसि - कृषि का व्यापार नहीं होता, वह अकर्म भूमि है । इन क्षेत्रों में १० प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं, जिससे मनवांछित प्राप्त कर मनुष्य अपना जीवन-निर्वाह करते हैं । यहाँ तीर्थंकरादि नहीं होते । अतः इन क्षेत्रों को भोगभूमि भी कहा जाता हैं ।
२७९ ) छप्पन अन्तद्वीप के क्षेत्र कौन से हैं ?
उत्तर : जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र की मर्यादा करनेवाला चुल्लहिमवंत पर्वत है। पूर्व तथा पश्चिम की तरफ लवण समुद्र के जल से जहाँ इस पर्वत का स्पर्श होता है, वहाँ इसके दोनों तरफ चारों विदिशाओं में गजदन्ताकार दोदो दाढाएँ निकली हुई है । एक - एक दाढा पर सात-सात अन्तद्वप है । इस प्रकार चार दाढाओं पर अट्ठाईस अन्तद्वीप है । भरतक्षेत्र की तरह ऐरवत क्षेत्र की मर्यादा करनेवाला शिखरी पर्वत है, जिसके पूर्व - पश्चिम के चारों कोणों में चार दाढाएँ हैं। और एक-एक दाढा पर सातसात अन्तद्वीप है । कुल चार दाढाओं पर अट्ठाईस अन्तद्वीप है । इसप्रकार दोनों पर्वत की आठ दाढाओं पर छप्पन अन्तद्वीप है ।
२८० ) ये अन्तद्वीप क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर : ये लवणसमुद्र के बीच में होने से अथवा परस्पर द्वीपों में अन्तर (दूरी) होने से ये अन्तद्वीप कहलाते हैं । यहाँ भी असि-मसि - कसि का कर्म नहीं होता ।
२८१) देवता के १९८ भेद कौन से हैं ?
उत्तर : १० भवनपति, १५ परमधार्मिक, १६ वाणव्यन्तर, १० तिर्यक्जृम्भक, १० ज्योतिष्क, १२ वैमानिक, ३ किल्विषिक, ९ लोकान्तिक, ९
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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