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४४८) क्रियावान्-अक्रियावान् से क्या तात्पर्य है ? उत्तर : क्रिया का अर्थ यहाँ गमन-आगमन के लिये प्रयुक्त हुआ है ।
धर्मास्तिकायादि चारों द्रव्य सदाकाल स्थिर स्वभावी है, अतः उन्हें अक्रियावान् कहा गया है । जीव और पुद्गल में चूंकि गति होती है,
अतः वे क्रियावान् हैं। ४४९) छह द्रव्यों में कितने नित्य व कितने अनित्य हैं ? उत्तर : पुद्गल भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करने से अनित्य है तथा शेष
चार सदा स्वस्वभाव में रहने से नित्य है । जीव आत्मत्व की अपेक्षा नित्य है और गतियों में परिभ्रमण करने से, विभिन्न पर्याय धारण करने
से अनित्य है। ४५०) छह द्रव्यों में कितने द्रव्य कारण तथा कितने अकारण हैं ? उत्तर : धर्मास्तिकायादि ५ द्रव्य कारण तथा जीव द्रव्य अकारण हैं । ४५१) कारण-अकारण से क्या आशय है ? उत्तर : जो द्रव्य अन्य द्रव्यों के कार्य में उपकारी निमित्तभूत होता है, उसे कारण
कहते है। और वह कारण द्रव्य जिन द्रव्यों के कार्य में कारणभूत हुआ
हो, वे द्रव्य अकारण है। ४५२) छह द्रव्यों में से कितने द्रव्य कर्ता व कितने अकर्ता हैं ? । उत्तर : केवल जीव द्रव्य कर्ता है । शेष ५ द्रव्य अकर्ता है। ४५३) कर्ता व अकर्ता से क्या तात्पर्य है ? उत्तर : अन्य द्रव्यों का उपभोग करने वाला द्रव्य कर्ता कहलाता है तथा उपभोग
में आने वाले द्रव्य अकर्ता कहलाते हैं। दूसरे अर्थ में, जो धर्म-कर्म, पुण्य-पाप आदि क्रिया करता है, वह कर्ता है तथा धर्म, कर्मादि नहीं
करने वाला अकर्ता है। ४५४) छह द्रव्यों में कितने द्रव्य सर्वव्यापी तथा कितने देशव्यापी हैं ? उत्तर : एक आकाश द्रव्य लोक-अलोक प्रमाण व्याप्त होने से सर्वव्यापी है
तथा शेष ५ द्रव्य केवल लोकाकाश में ही होने से देशव्यापी है ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण