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आश्रव तत्त्व का विवेचन ६५०) आश्रव किसे कहते है ? उत्तर : जीव की शुभाशुभ प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर कर्मवर्गणा का आत्मा में
आना आश्रव कहलाता है। ६५१) आश्रव के कितने भेद हैं ? उत्तर : आश्रव के दो भेद हैं - १. शुभाश्रव, २. अशुभाश्रव । ६५२) शुभाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : शुभयोग अथवा शुभप्रवृत्ति से जिस कर्म का आत्मा में आगमन होता
है, उसे पुण्य या शुभाश्रव कहते है।। ६५३) अशुभाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : अशुभ योग तथा अशुभ प्रवृत्ति से अशुभ कर्म का आत्मा में आगमन
__ होता है, उसे अशुभाश्रव (पाप) कहते है । ६५४) आश्रव के अन्य अपेक्षा से कितने भेद हैं ? उत्तर : २० भेद हैं -
(१) मिथ्यात्व - मिथ्यात्व का सेवन करना । (२) अव्रत - प्रत्याख्यान नहीं करना । (३) प्रमाद - ५ प्रकार के प्रमाद का सेवन करना । (४) कषाय - २५ कषायों का सेवन करना । (५) अशुभयोग - मन-वचन-काया को अशुभ में प्रवृत्ति । (६) प्राणातिपात - हिंसा करना । (७) मृषावाद - झूठ बोलना । (८) अदत्तादान - चोरी करना । (९) मैथुन - अब्रह्म का सेवन करना । (१०) परिग्रह - परिग्रह रखना । (११) श्रोत्रेन्द्रिय - कान को वश में न रखना । (१२) चक्षुरिन्द्रिय - आँख को वश में न रखना । (१३) घ्राणेन्द्रिय - नाक को वश में न रखना ।
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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