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क्षायिक भाव वाली तत्व रुचि का प्रतिबन्ध करता है, उसे सम्यक्त्व मोहनीय कहते है । यद्यपि यह कर्म शुद्ध होने के कारण सम्यक्त्व में व्याघात नहीं पहुँचाता है तथापि उसे मलिन अथवा चंचल कर देता है।
५९९ ) मिश्र मोहनीय किसे कहते है ?
उत्तर : जिस कर्म के उदय से धर्म के प्रति न रुचि हो, न अरुचि हो, उसे मिश्र मोहनीय कहते है ।
६०० ) मिथ्यात्व मोहनीय किसे कहते है ?
उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप की रुचि ही न हो बल्कि विपरीत दृष्टि में मोहित हो, उसे मिथ्यात्व मोहनीय कहते है । पाप तत्व में केवल मिथ्यात्व मोहनीय प्रकृति ही अपेक्षित है । अन्य दो नहीं ।
६०१ ) सम्यक्त्व किसे कहते है ?
उत्तर : जिस कर्म के उदय से आत्मा को जीव - अजीवादि नौ तत्त्वों पर श्रद्धा होती है अथवा सुदेव - सुगुरु-सुधर्म पर श्रद्धा होती है, उसे सम्यक्त्व कहते है ।
६०२) चारित्र मोहनीय किसे कहते है ?
उत्तर : आत्मा के स्वभाव में रमण करना चारित्र है। जो कर्म इस चारित्र गुण का घात करता है, उसे चारित्र मोहनीय कहते है ।
६०३ ) कषाय चारित्र मोहनीय किसे कहते है ?
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उत्तर : कष् – संसार, आय - वृद्धि । जिससे संसार की वृद्धि हो अथवा जो आत्मा के गुणों को कषे (नष्ट करे), उसे कषाय चारित्र मोहनीय कहते
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६०४) नोकषाय चारित्र मोहनीय किसे कहते है ?
उत्तर : जो कषाय न हो परंतु कषाय के उदय के साथ जिनका उदय हो अथवा कषायों के उद्दीपन में जो सहायक हो, उसे नोकषाय चारित्र मोहनीय
कहते है ।
श्री नवतत्त्व प्रकरण