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४. प्रत्याख्यानीय लोभ : काजल के रंग के समान यह लोभ कुछ प्रयत्न
से दूर होता है। ६०९) संज्वलन चतुष्क का विवेचन करो । उत्तर : जिस कषाय के उदय से हिंसा आदि पापों का पूर्ण त्याग करने पर
भी वीतराग भावों की अर्थात् यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति नहीं होती है, उसे संज्वलन कषाय कहते है । इस कषाय की काल मर्यादा एक दिन से पक्ष पर्यंत है। इस कषाय के उदय में जीव देवगति का ही बंध करता है। १. संज्वलन क्रोध : पानी में खिंची गयी रेखा जिस प्रकार आगे-आगे चलने से पीछे-पीछे नष्ट हो जाती है, वैसे ही यह क्रोध जल्दी शांत हो जाता है। २. संज्वलन मान : इस मान वाला जीव सामान्य परिश्रम से नमाये जाने वाले बेंत के समान होता है, जो शीघ्र ही अपने आग्रह को छोड़ देता
३. संज्वलन माया : बांस के छिलके में रहने वाला टेढापन बिना श्रम के ही सीधा हो जाता है, उसी प्रकार यह माया सरलता से दूर हो जाती
४. संज्वलन लोभ : हल्दी के रंग के समान जो शीघ्रता से मिट जाता
हैं, उसे संज्वलन लोभ कहते है । ६१०) नो-कषाय मोहनीय के कितने भेद हैं ? उत्तर : नो-कषाय मोहनीय के ९ भेद हैं -
१. हास्य - जिस कर्म के उदय से जीव को अकारण या सकारण हंसना आए। २. रति - जिस कर्म के उदय से अनुकूलता में प्रीतिभाव हो । ३. शोक - जिससे चित्त में शोक उत्पन्न हो । ४. अरति - जिसके कारण प्रतिकूलता में अप्रीति हो । ५. भय - जिसके कारण चित्त में भय उत्पन्न हो ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण