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उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को विविध सुख साधन मिले, आरोग्य
तथा इन्द्रिय आदि से उत्पन्न होने वाले सुख का अनुभव हो, उसे शाता
वेदनीय कर्म कहते है। ४८९) उच्चगोत्र किसे कहते है ? । उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को उच्च कुल, उत्तम वंश तथा जाति
की प्राप्ति होती है, उसे उच्चगोत्र कहते है। ४९०) मनुष्य गति किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को मनुष्य पर्याय की प्राप्ति होती है, उसे
मनुष्यगति कहते है। ४९१) मनुष्यानुपूर्वी किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव मनुष्यभव में जाते समय आकाश प्रदेशों
की श्रेणी के अनुसार गमन करता हुआ उत्पत्ति स्थान पर पहुँचता है,
उसे मनुष्यानुपूर्वी कहते है। ४९२) गति नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के कारण नरकादि पर्याय प्राप्त होती है, उसे गति नामकर्म
कहते है। इसके ४ भेद है - १. नरक गति, २. तिर्यञ्च गति, ३. मनुष्य
गति, ४ देवगति । ४९३) आनुपूर्वी नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से विग्रह गति में रहा हुआ जीव आकाशप्रदेशों
की श्रेणी के अनुसार गमन कर उत्पत्ति स्थल पर पहुँचता है, उसे आनुपूर्वी नामकर्म कहते है। जीव की गति दो प्रकार से होती है - ऋजु गति तथा वक्रगति । ऋजुगति से जीव सीधी आकाश श्रेणी से दूसरे भव में जाता है। परंतु जब कभी उसे आकाश श्रेणी में वक्रता करनी पड़ती है, तब यह कर्म उदय में आता है । अर्थात् समश्रेणी में इस कर्म का उदय नहीं होता। वक्रगति में ही इसका उदय होता है तथा जिस गति में पैदा होना होता है, वहाँ पहुँचने तक इसका उदय रहता है।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण