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४३४) अवसपिणी काल के छह आरों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करो । उत्तर : १. सुषम-सुषम : यह आरा ४ कोडाकोडी सागरोपम का होता है।
इस आरे में जन्मे मनुष्य का देहमान ३ कोस, आयुष्य ३ पल्योपम का होता है तथा तीन-तीन दिन के अन्तर से आहार की इच्छा होती है। उन के वज्र ऋषभनाराच संघयण एवं समचतुरस्त्र संस्थान होता है। शरीर में २५६ पसलियाँ होती हैं । इनकी इच्छा तथा आकांक्षाएँ दस प्रकार के कल्पवृक्ष पूरी करते है। कल्पवृक्ष इन्हें इतने रसप्रचुर, स्वादिष्ट तथा शक्तिवर्धक फल प्रदान करते हैं कि तुअर के दाने जितना आहार ग्रहण करने मात्र से ही इन्हें संतोष और तृप्ति हो जाती है। स्वयं की आयुष्य के ६ मास शेष रहे हो तब युगलिनी एक युगल (पुत्र-पुत्री) को जन्म देती है तथा ४९ दिन तक ही उनका पालन पोषण करती है । तत्पश्चात वह युगल स्वावलंबी होकर स्वतंत्र घूमता है। युवा होने पर वे ही पतिपत्नी का व्यवहार करते हैं । इन (युगल रूप जन्म होने के कारण) युगलिक मनुष्यों का आयुष्य पूर्ण होने पर एक छींक और एक जंभाई से मृत्यु हो जाती है । ये अल्प विषयी तथा अल्प कषायी होने से मरकर देवलोक में ही जाते हैं । इस आरे में सुख ही सुख होने से इसे सुषम-सुषम कहा जाता है। २. सुषम : इस आरे का काल मान ३ कोडाकोडी सागरोपम है। पहले
आरे की अपेक्षा इसमें कम सुख होता है पर दुःख का पूर्णतया अभाव होता है । इस आरे के मनुष्य की अवगाहना २ कोस, आयुष्य २ पल्योपम शरीर में १२८ पसलियाँ तथा २ दिन के अंतर में बेर प्रमाण आहार होता है। बुद्धि, बल, कांति में पूर्व की अपेक्षा हानि आती है। संतान पालन ६४ दिन करते हैं । शेष प्रथम आरे की तरह है। ३. सुषम-दुःषम : इसका कालमान २ कोडाकोडी सागरोपम है। इसमें सुख अधिक व दुःख कम होता है । देहमान एक कोस, आयुष्य १ पल्योपम, ६४ पसलियाँ तथा आहारेच्छा एक दिन के बाद व आंवले जितने आहार से ही तृप्ति हो जाती है। संतानपालन ७९ दिन होता है। इस आरे के जब ८४ लाख पूर्व, ३ वर्ष ८१/ माह शेष रहते हैं
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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