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+ ४८ = ३५१ भेद होते हैं। २८९) ढाई द्वीप के बाहर जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : ११८ भेद । ४६ भेद तिर्यञ्च के (बादर तेउकाय के अपर्याप्त तथा
पर्याप्त, ये दो भेद छोडकर), १६ वाणव्यन्तर देव, १० तिर्यग् जृम्भकदेव, १० ज्योतिष्क, इन ३६ के अपर्याप्त तथा पर्याप्त जोडने
पर ७२ भेद हुए। इस प्रकार कुल ७२ + ४६ = ११८ भेद हुए। २९०) अधोलोक में जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : ११५ भेद । ७ नरक, १५ परमाधार्मिक, १० भवनपति, इन ३२ के
पर्याप्त तथा अपर्याप्त ये दो-दो भेद जोडने पर ६४ भेद हुए। ४८ तिर्यञ्च
के व ३ मनुष्य के । ये कुल ६४ + ४८ + ३ = ११५ भेद हुए। २९१) तिर्छलोक में जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : ४२३ भेद । मनुष्य के ३०३ भेद, तिर्यञ्च के ४८ । १६ वाणव्यतर, १०
जृम्भक, १० ज्योतिष्क, इन ३६ के अपर्याप्त और पर्याप्त भेद जोडने
पर ७२ हए । इस प्रकार कुल ३०३ + ४८ + ७२ = ४२३ भेद हुए। २९२) उर्ध्वलोक में जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? । उत्तर : १२२ भेद । तिर्यञ्च के ४६ (बादर तेउकाय के पर्याप्त तथा अपर्याप्त,
इन दो भेदों को छोडकर) । ३ किल्विषी, १२ देवलोक, ९ लोकान्तिक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तर विमान, इन ३८ के पर्याप्त तथा अपर्याप्त के
भेद जोडने पर ७६ भेद हुए । कुल भेद ४६ + ७६ = १२२ हुए । २९३) सिद्धशिला पर जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : १२ भेद । पृथ्वी आदि पांच स्थावर के सूक्ष्म के अपर्याप्त तथा पर्याप्त,
ये १० भेद तथा बादर वायुकाय के अपर्याप्त तथा पर्याप्त ये २ भेद ।
इस प्रकार कुल १२ भेद पाये जाते हैं। २९४) सातवीं नरक के नीचे जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : सिद्धशिलावत् यहाँ भी १२ भेद पाये जाते हैं। २९५) संपूर्ण लोकाकाश में जीव के कितने भेद पाये जाते हैं ? उत्तर : ५६३ भेद। २९६) जीव तत्त्व को जानने का उद्देश्य क्या है ? उत्तर : जीव तत्त्व ज्ञेय है अर्थात् जानने योग्य है क्योकि जीवतत्त्व को जाने
बिना नव तत्त्वो में हेय, ज्ञेय व उपादेय कौन से हैं, उसकी प्रतीति नहीं श्री नवतत्त्व प्रकरण
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