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करें कि कितने जीव मोक्ष में गये तो एक ही उत्तर है कि एक निगोद का अनन्तवां भाग ही मोक्ष में गया है।
इस जगत में निगोद के असंख्याता गोले हैं। एक-एक गोले में असंख्य निगोद है और एक-एक निगोद में अनंत-अनंत जीव हैं। इस एक निगोद का अनन्तवां भाग ही मोक्ष में गया है। परमात्मा का यह कथन केवल श्रद्धापूर्वक अवधारणीय है। क्योंकि अल्पज्ञानी-अज्ञानी जीवों की सामान्य बुद्धि इतने निगोद के जीवों की कल्पना नहीं कर सकती। फिर उसमें असंख्यात तथा अनंत जीवों का अस्तित्व हमारी बुद्धि को अवश्य चकित कर देता है, हमारी बुद्धि यदि इसे भ्रम कहती है, अयथार्थ अथवा कोरी कल्पना कहती है तो अवश्य मिथ्यात्व दशा को उपलब्ध होती है। यदि हमारी धारणा श्रद्धापूर्वक स्वीकार करती है कि केवलज्ञानी का कथन परमसत्य है तो सम्यक्त्व की रोशनी से आलोकित होकर जीवात्मा अल्पभवी बन संसार से मुक्त हो जाती है।
जिनेश्वर का शासन अनूठा व अद्भुत है। यहाँ प्रत्येक कथन केवलज्ञान की कसौटी पर कसा हुआ है। अतः विसंवाद, असत्यता अथवा पूर्वापर विरोध का सर्वथा अभाव है। इस प्रकार परमात्मा ने जैसा नवतत्त्व का निरूपण किया है, वह सत्य है, तथ्य है, युक्तियुक्त है, श्रद्धापूर्वक अवधारणीय है । जो इन नवतत्त्वों का अध्ययन कर, इस पर सम्यक् श्रद्धान कर, सम्यक् आचार-विचार रूप सम्यक् चारित्र का पालन करता है, वह मुक्तिपद को प्राप्त करता है । नवतत्त्वों को जानने का यही उद्देश्य तथा परम लक्ष्य है ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण