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उत्तर : रस रूप आहार के पुद्गलों को जिस शक्ति द्वारा जीव सप्त धातुओं
के रूप में परिणमित करता है, उसे शरीर पर्याप्ति कहते है । इसका काल औदारिक तथा वैकिय शरीर वाले जीवों के असंख्यात समय वाले
अंतर्मुहूर्त का होता है। १५३) इन्द्रिय पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : जीव जिस शक्ति के द्वारा धातुरूप में परिणत हुए आहार को इन्द्रिय
रूप में परिणमित करता है, उसे इन्द्रिय पर्याप्ति कहते है। १५४) इन्द्रिय पर्याप्ति का काल कितना है ? उत्तर : वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय का तथा औदारिक शरीर वाले
जीवों को असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त का काल होता है। १५५) श्वासोच्छास पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : जिस शक्ति के द्वारा जीव श्वासोच्छ्वास योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण
करके उन्हें श्वासोच्छास के रूप में परिणमन कर विसर्जन करता है, उसे
श्वासोच्छास पर्याप्ति कहते है। १५६) श्वासोच्छास पर्याप्ति का काल कितना है ? उत्तर : औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त की तथा वैक्रिय शरीर
वाले जीवों को एक समय की श्वासोच्छास पर्याप्ति होती है। १५७) भाषा पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : जीव जिस शक्ति के द्वारा भाषायोग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण करके,
भाषा रूप में परिणमन कर विसर्जित करता है, उसे भाषा पर्याप्ति कहते
१५८) भाषा पर्याप्ति का काल कितना है ? उत्तर : औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त का तथा वैक्रिय शरीर
वाले जीवों का एक समय का काल शास्त्र में वर्णित है । १५९) मन:पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : जीव जिस शक्ति के द्वारा मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर मन
के रूप में परिणत कर विसर्जन करता है. उसे मनः पर्याप्ति कहते है।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण