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पित्त आदि से उपकरण द्रव्येन्द्रिय नष्ट हो जाय तो आभ्यंतर द्रव्येन्द्रिय होने पर भी विषयों का ग्रहण नहीं होता। जैसे-बाह्य निर्वृत्ति है तलवार, आभ्यंतर निर्वृत्ति है तलवार की धार और उपकरण है - तलवार की
छेदन-भेदन की शक्ति । १२९) भावेन्द्रिय किसे कहते है ? उत्तर : आत्मा के परिणाम विशेष (जानने की योग्यता और प्रवृत्ति)-ज्ञान शक्ति
को भावेन्द्रिय कहते है। १३०) भावेन्द्रिय के भेद कितने हैं ? उत्तर : भावेन्द्रिय के २ भेद हैं - लब्धि तथा उपयोग । १३१) लब्धि भावेन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर स्पर्शादि
विषयों को जानने की शक्ति को लब्धि भावेन्द्रिय कहते हैं । १३२ ) उपयोग भावेन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त शक्ति की
प्रवृत्ति को उपयोग भावेन्द्रिय कहते हैं । १३३) लब्धि व उपयोग में क्या अंतर है? उत्तर : चेतना की योग्यता लब्धि है और चेतना का व्यापार उपयोग है। लब्धि
भावेन्द्रिय से जीवात्मा में आत्म स्वरुप का उतना प्रकट होना, जिससे वह स्पर्श-गन्ध-रूप-रसादि को जान सके । इस योग्यता के प्राप्त होने पर भी यह आवश्यक नहीं कि हम निरंतर उस विषय का ज्ञान करते रहे। जिस समय जिस इन्द्रिय को उपयोग में लाया जाता है, उस समय उसके द्वारा ज्ञान कर सकते हैं। यह उपयोग भावेन्द्रिय है। उदाहरणार्थ - दूरबीन खरीदने की शक्ति यह लब्धि है और दूर स्थित पदार्थों को
देखना उपयोग है। १३४) पांच इन्द्रियों का आभ्यन्तर आकार कैसा है ? उत्तर : बाह्य आकार तो कान, नाक, आंख, जीभ, शरीर का अपना-अपना है।
आभ्यन्तर आकार श्रोत्रेन्द्रिय का कदम्ब के फूल जैसा, चक्षुरिन्द्रिय का मसूर की दाल जैसा, घ्राणेन्द्रिय का अतिमुक्त पुष्प की चन्द्रिका जैसा,
- - - श्री नवतत्त्व प्रकरण
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