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उपसंहार
- गाथा जइआ य होइ पुच्छा, जिणाणमग्गंमि उत्तर तइया । इक्कस्स निगोयस्स, अणंतभागो य सिद्धिगओ ॥६०॥
अन्वय
जिणाणमग्गंम्मि जइया य पुच्छा होइ तइया उत्तरं, इक्कस्स निगोयस्स, अणंतभागो य सिद्धिगओ ॥६०॥
संस्कृत पदानुवाद यदा च भवति पृच्छा, जिनेन्द्रमार्गे उत्तरं तदा । एकस्य निगोदस्य, अनन्तभागो च सिद्धिगतः ॥६०॥
शब्दार्थ
जइआ - जब-जब
उत्तरं - उत्तर य - और
तइया - तब-तब होइ - होती है
इक्कस्स - एक पुच्छा - पृच्छा (पूछा जाता है) निगोयस्स - निगोद का जिणाणमग्गंमि - जिनेश्वर के अणंतभागो - अनन्तवां भाग ___ मार्ग (शासन) में सिद्धिगओ - मोक्ष में गया है
भावार्थ जिनेश्वर के शासन में जब-जब इस प्रकार का प्रश्न पूछा जाता है, तब-तब यही उत्तर होता है कि एक निगोद का अनन्तवां भाग ही मोक्ष में गया है ॥६०॥
विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा नवतत्त्व की अंतिम गाथा है। इसका विवरण मोक्षतत्त्व के ७वें भाग द्वार में समाहित है। इस काल के प्रवाह में उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी रूप अनंत-अनंत कालचक्र व्यतीत हो गये हैं, हर कालचक्र में तीर्थंकर तथा उनके शासन में अनेक जीव मोक्ष में जाते रहे है । अनन्तकाल से चल रही इस व्यवस्था में अनंत जीव मोक्ष में गये हैं, तथापि जिनेश्वर से यदि कोई प्रश्न १६२
श्री नवतत्त्व प्रकरण