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आत्मदशा को प्राप्त होने का नाम ही मोक्ष है। अत: मोक्ष तत्त्व चरम
एवं परमश्रेष्ठ होने से उपादेय है। ६२) नवतत्त्वों में संख्याभेद किस प्रकार से है ? उत्तर : नवतत्त्वों का एक दूसरे में समावेश होने से सात, पांच अथवा दो तत्त्व
भी होते हैं। पुण्य तथा पाप को आश्रव तत्त्व में समाविष्ट करने पर तत्त्व सात होते
आश्रव, पुण्य तथा पाप, इन तीनों तत्त्वों को बंध में गिनने पर व निर्जरा व मोक्ष को एक ही गिनने पर तत्त्व पांच होते हैं । संवर, निर्जरा तथा मोक्ष, ये तीन तत्त्व जीव के स्वभाव रूप होने से जीव तत्त्व में इन तीनों का समावेश हो जाता है। पुण्य, पाप, आश्रव तथा बन्ध, ये चारों तत्त्व कर्म परिणाम रूप होने से इनका समावेश अजीव तत्त्व में हो जाता है। इस प्रकार ४ तत्त्व जीव व ५ तत्त्व अजीव स्वभावी है । इस विवक्षा से नौ तत्त्व के जीव तथा अजीव, ये दो
ही भेद रह जाते हैं। ६३) नवतत्त्वों में रूपी तत्त्व कितने हैं ? उत्तर : रूपी तत्त्व ६ हैं - १. जीव, २. अजीव, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आश्रव,
६. बंध। ६४) नवतत्त्वों में अरूपी तत्त्व कितने है ? उत्तर : अरूपी तत्त्व ५ है - १. जीव, २. अजीव, ३. संवर, ४. निर्जरा, ५.
मोक्ष ।
६५) रूपी तथा अरूपी किसे कहते है ? उत्तर : जिसमें रूप, रस, गंध व स्पर्श पाये जाते हैं, वह पदार्थ रूपी कहलाता
है तथा जिसमें इन चारों का अभाव हो, वह अरूपी कहलाता है । ६६) जीव रूपी है या अरूपी ? उत्तर : निश्चय नय से आत्मा शुद्ध स्वरूपी होने से अरूपी है परंतु व्यवहार
नय की अपेक्षा से संसार में कर्म संयोग से नानाविध योनियों में भ्रमण
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- - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण
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