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नाम - नाम (तथा)
आउ - आयुष्य का गोएसु - गोत्र का
टिइबंध - स्थिति बंध तित्तीसं - तैंतीस (३३) उक्कोसा - उत्कृष्ट से अयराई - सागरोपम
भावार्थ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय तथा अंतराय, इन चारों का उत्कृष्ट स्थिति बंध ३० कोडाकोडी सागरोपम है ॥४०॥
मोहनीय कर्म का ७० कोडाकोडी, नाम तथा गोत्र का २० कोडाकोडी एवं आयुष्य का ३३ सागरोपम का उत्कृष्ट स्थितिबंध है ॥४१॥
विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में आठों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का उल्लेख है।
करोड को करोड से गुणा करने पर जो संख्या आती है, उसे कोडाकोडी कहते हैं। - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय तथा अंतराय, इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति ३० कोडाकोडी सागरोपम की है। मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपमः, नाम तथा गोत्र कर्म की २० कोडाकोडी सागरोपम व आयुष्य कर्म की ३३ सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है।
जिस कर्म का जितने कोडाकोडी सागरोपम का बन्ध होता है, उस कर्म की उतने (प्रत्येक पर) १०० वर्ष की अबाधा (अनुदय अवस्था) होती है । जैसे ज्ञानावरणीय की स्थिति ३० कोडाकोडी सागरोपम है, तो प्रत्येक सागरोपम पर १०० वर्ष की अबाधी गिनने पर(३० x १०० = ३०००) तीन हजार वर्ष का अबाधा काल होता. है । इतने वर्ष बीतने के बाद ज्ञानावरणीय कर्म उदय में आकर आत्मा से निर्जरित होता जाता है। आयुष्य के बिना सातों कर्मो की अबाधा स्थिति बंध के अनुसार न्यूनाधिक होती है, परंतु आयुष्य कर्म की अबाधा अनियमित होती है। उत्कृष्ट आयुष्य ३३ सागरोपम का है तथा आयुष्य का उत्कृष्ट स्थितिबंध पूर्व करोड का तीसरा भाग अधिक ३३ सागरोपम होता है। यानि उत्कृष्ट अबाधा काल अधिक होता है ।
----------- --- श्री नवतत्त्व प्रकरण
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