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भावार्थ द्रव्यप्रमाणद्वार में सिद्ध परमात्मा के अनंत जीव हैं । एक सिद्ध परमात्मा तथा सभी सिद्ध परमात्मा लोकाकाश के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र में रहते हैं ॥४७॥
विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में दूसरे व तीसरे, इन २ द्वारों का विश्लेषण हैं -
२. द्रव्यप्रमाणद्वार : सिद्धों के अनन्त जीव हैं, क्योंकि जघन्य से एक समय के अन्तर में तथा उत्कृष्ट से छह मास के अन्तर में कोई न कोई जीव अवश्य मोक्ष में जाता है। एक समय में जघन्य से एक तथा उत्कृष्ट से १०८ जीव भी एक साथ मोक्ष में जा सकते हैं । अनन्तकाल में अनन्तजीव मोक्ष में गये हैं, अतः द्रव्य से सिद्ध के जीव अनन्त है।
३. क्षेत्रद्वार : सिद्ध के जीवों का क्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग जितना है क्योंकि एक सिद्ध की अवगाहना (देहमान) जघन्य से १ हाथ ४ अंगुल तथा उत्कृष्ट से एक कोस अर्थात् दो हजार धनुष का छट्ठा भाग यानी ३३३ धनुष ३२ अंगुल (१३३३ हाथ और ८ अंगुल) होती है । सिद्धशिला लोक के असंख्यातवें भाग जितना क्षेत्र है, इसलिये एक सिद्ध भी लोक के असंख्यातवें भाग में रहा हुआ है।
स्पर्शना, काल तथा अन्तर द्वार का विवेचन
नाथा
फुसणा अहिया कालो, इग सिद्ध पडुच्च साइओऽणंतो । पडिवाया भावाओ, सिद्धाणं अंतरं नत्थि ॥४८॥
अन्वय फुसणा अहिया, इग सिद्ध पडुच्च साइओऽणंतो कालो, पडिवाया भावाओ, सिद्धाणं अंतरं नत्थि ॥४८॥ .
संस्कृतपदानुवाद स्पर्शनाधिका कालः, एक सिद्धं प्रतीत्य साद्यनन्तः ।
प्रतिपाताऽभावतः, सिद्धानामन्तरं नास्ति ॥४८॥ श्री नवतत्त्व प्रकरण