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अनुयोग द्वार कहते हैं ।
१. सत्पद प्ररुपणाद्वार : कोई भी पदवाला पदार्थ सत् (विद्यमान) है या असत् ? अर्थात् जगत् में उस पदार्थ का अस्तित्व है या नहीं। उसके विषय में प्ररूपणा करना, सत्पद प्ररूपणा है । जैसे मोक्ष या सिद्ध है या नहीं ? अगर है तो गति आदि १४ मार्गणाओं में से किस किस मार्गणा में यह मोक्षपद है ? उसके संबंध में प्ररूपणा - प्रतिपादन करना, सत्पद प्ररूपणा है ।
२. द्रव्य प्रमाणद्वार : वे पदार्थ जगत् में कितनें हैं, उसकी संख्या दिखाना-बताना अर्थात् सिद्ध के जीव कितने हैं, इनकी संख्या संबंधी विचारणा द्रव्यप्रमाण द्वार है ।
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३. क्षेत्रद्वार : वह पदार्थ जगत् में कितने स्थान/क्षेत्र का अवगाहन करके रहता है, यह विचारणा क्षेत्रद्वार है ।
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४. स्पर्शना द्वार : वह पदार्थ जिस क्षेत्र में रहता है, उस क्षेत्र में जितने आकाश प्रदेश है, उतने ही स्पर्श करके रहता है या अधिक ? इसकी व्याख्या स्पर्शना द्वार है ।
५. कालद्वार : उस पदार्थ की स्थिति कितने काल तक रहती है, इसका विचार करना कालद्वार है ।
६. अंतरद्वार : जो पदार्थ जिस रूप में है, वह पदार्थ उस स्वरूप से मिटकर दूसरे रूप में परिवर्तित हो पुनः असली या वास्तविक रूप में आता है कि नहीं, यह विचारना अन्तरद्वार है । अगर परिवर्तन होता है तो कितने समय बाद, यह विचार करना कालान्तर द्वार है ।
७. भागद्वार : उस पदार्थ की संख्या सजातीय शेष पदार्थों के कितनवें भाग में है, यह विचारणा भागद्वार है
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८. भावद्वार : औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक तथा पारिमाणिक, इन पाँच भावों में वह पदार्थ किस भाव के अंतर्गत है, यह विचारना भावद्वार है ।
९. अल्पबहुत्व द्वार : उस पदार्थ के भेदों में परस्पर संख्या की हीनाधिकता को दिखाना अल्पबहुत्व द्वार है ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण