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आदि आरंभजनक क्रियाएँ आरंभिकी क्रिया कहलाती है।
७. पारिग्रहिकी क्रिया : धन-धान्यादि परिग्रह का संचय कर उस पर ममत्व रखना पारिग्रहिकी क्रिया है।
८. मायाप्रत्ययिकी क्रिया : छल-कपट करके दूसरों को ठगना मायाप्रत्ययिकी क्रिया है।
९. मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया : वीतराग प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा न करना मिथ्यात्व है । उस निमित्त से लगने वाली क्रिया मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी
१०. अप्रत्याख्यानिकी क्रिया : त्याग-प्रत्याख्यान न करने से लगने वाली क्रिया अप्रत्याख्यानिकी है।
११. दृष्टिकी क्रिया : जीव या अजीव को राग-द्वेष युक्त नजर से देखने पर जो क्रिया लगती है, वह दृष्टिकी क्रिया है।
१२. स्पृष्टिकी क्रिया : जीव या अजीव का रागादि से स्पर्श करना, स्पृष्टिकी क्रिया है।
१३. प्रातित्यकी क्रिया : जीव तथा अजीव वस्तु के निमित्त से रागद्वेष करना, किसी की ऋद्धि, समृद्धि देखकर जलना, स्तंभादि से टकराने पर द्वेष करना, प्रातित्यकी क्रिया है ।
१४. सामंतोपनिपातिकी क्रिया : अपनी उत्तम वस्तु तथा वैभव आदि को लोग देखे तब की प्रशंसा सुनकर मन में प्रसन्न होना तथा घी-तेल आदि का भाजन खुला रखनें, से उसमें संपातिम जीव गिरकर विनष्ट होते हैं । इससे जो क्रिया लगती है, उसे सामंतोपनिपातिकी क्रिया कहते है।
१५. नैशस्त्रिकी क्रिया : राजा आदि की आज्ञा से दूसरे से शस्त्रादि का निर्माण करवाना, जलाशायों को सुखाना, शुद्धाहार को परठ देना, सुपात्र शिष्य को निकाल देना, नैशस्त्रिकी क्रिया है।
१६. स्वहस्तिकी क्रिया : अपने हाथों से आत्मघात करना या शस्त्रास्त्र से किसी पदार्थ का घात करना, स्वहस्तिकी क्रिया है।
१७. आज्ञापनिकी क्रिया : आज्ञा देकर वस्तु, आदि कुछ मंगवाना,
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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