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समता में स्थिर रहना, देश परीषह है।
६. अचेल परीषह : वस्त्र का सर्वथा अभाव अथवा जीर्ण वस्त्र मिलने पर भी दीनता का विचार न करते हुए नग्नता को समभावपूर्वक सहना, अचेल परीषह है।
७. अरति परीषह : अरति अर्थात् उद्वेग-अरूचि । संयमधर्म का पालन करते हुए अनेक कठिनाईयों के कारण अरूचि का प्रसंग आ पडने पर मन में किसी तरह का उद्वेग या विषाद न लाना परंतु धर्मानुष्ठान में धैर्यपूर्वक रस लेना, अरति परीषह है।
८. स्त्री परीषह : साधक पुरुष अथवा स्त्री का अपनी साधना में विजातीय आकर्षण से न ललचाना, सहा दृष्टि से न देखना, न वार्तालाप करना, स्त्री (पुरूष) परीषह है।
९. चर्या परीषह : चर्या-चलना, विहार करना । एक स्थान में नियतवास न कर भिन्न-भिन्न स्थानों में नौकल्पी विहार करना, उसमें आलस्य या प्रमाद न करना, चर्या परीषह है।
१०. निषद्या परीषह : शून्य गृह, श्मशान, सर्पबिल, सिंहगुफा आदि एकान्त स्थानों में मर्यादित समय तक आसन लगाकर बैठना, यदि भय का प्रसंग आ पडे तो भी चलायमान न होना, निषद्या परीषह है।
११. शय्या परीषह : कोमल या कठिन, ऊँची-नीची जैसी भी जगह मिले उसमें उद्वेग न करते हुए समभावपूर्वक शयन करना, शय्या परीषह है।
१२. आक्रोश परीषह : कोई ताडना-तर्जना या तिरस्कार करे तब भी उसे सत्कारवत् समझना, आक्रोश परीषह है।
१३. वध परीषह : कोई अज्ञानी डंडे, चाबुक या लाठी से प्रहार करते हुए हत्या भी कर दे, तब भी उसके प्रति द्वेष न करते हुए उस उपसर्ग को समभावपूर्वक सहना, वधं परीषह है। .
१४. याचना परीषह : साधु कोई भी वस्तु मांगे बिना ग्रहण नहीं करता। मन में किसी भी प्रकार का अभिमान न रखते हुए धर्मयात्रा के निर्वाहार्थ याचकवृत्ति स्वीकार करना, याचना परीषह है ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण