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३. आर्जव : कपट रहित होना । माया, दम्भ, ठगी आदि का सर्वथा त्याग कर सरल तथा निष्कपट होना, आर्जव है ।
४. मुक्ति : लोभ पर विजय प्राप्त करं निःस्पृह बनना ।
५. तप : इच्छाओं का निरोध करना । इसके १२ भेद हैं, जिनका कथन निर्जरा तत्त्व में किया गया है । तप से संवर तथा निर्जरा, दोनों होते है । ६. संयम : सम् - सम्यक् प्रकार का, यम पांच महाव्रत या पांच अणुव्रत का पालन संयम धर्म कहलाता है । मुनि के १७ प्रकार संयम होता है - पांच महाव्रत पालन, पांच इन्द्रिय निग्रह, चार कषाय जय तथा मन-वचनकाया के योगों की विरति ।
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७. सत्य : सत्य, प्रिय, हित-मित तथा कल्याणकारी निर्दोष वचन बोलना ।
८. शौच : मन-वचन तथा काया के व्यवहार को पवित्र रखना । ९. आकिंचन्य : किसी भी पदार्थ में ममत्व बुद्धि न रखना आकिंचन्य है। किंचन - कुछ भी, अ- नहीं, जिसके पास कुछ भी नहीं, वह अकिंचन है।
१०. ब्रह्मचर्य : नववाड सहित ब्रह्मचर्य का परिपूर्ण पालन करना । इस १० प्रकार के यतिधर्म को अंगीकार करने से कर्मों का संवर होता है ।
बारह भावना
गाथा
पढममणिच्चमसरणं, संसारों एगया य अन्नत्तं । असुइत्तं आसव संवरो य तह णिज्जरा नवमी ॥३०॥ लोगसहावो बौही, दुल्लहा धम्मस्स साहगा अरिहा । एआओ भावणाओ, भावेअव्वा पयत्तेणं ॥ ३१॥
अन्वय
पढमं अणिच्चं, असरणं, संसारो, एगया, य अन्नत्तं, असुइत्तं, आसव य संवरो तह नवमी णिज्जरा ||३०||
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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