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जीव का शुद्ध - अशुष्ट स्वरुप : मौलिक अनंत गुण, ८ कर्मबादल और प्रकटीत दोष
श्री नवतत्त्व प्रकरण
५८ अघाती कर्म
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अज्ञानता - मूर्वता/अंधत्व - मूकत्व १ से ४ .
इन्द्रिय - खोड घाती कर्म ज्ञानावरणीय
निद्रा - थीणद्धि -~--
अनंत / ज्ञान
उच्च कुल
ॐ
२) क्जावरणीय
नीच कुल
Recelle
अनत दर्शन ।
मिथ्यात्व अविरति
ਮ
Hal
गति - जाति यश अपयश जिननाम आदि
सदशक स्थावरदशक
सोभाग्य, दौर्भाग्य-वर्णादि
नाम कर्म
) अरुपिता
सम्यग दर्शन
G चारित्र
कषाय क्रोधादि
नोकवाय
अक्षय
स्थिति।
अनंत वीर्य अव्याबाध सुख
अंतराय कर्म
हास्य-रति अरति-शोक- स्त्रीवेदान्दि
नरक तिर्यचं मनुष्य देव जीवन
शाता - अशाता - सुख - दुःरव ।
कपणता - अलाभ दरिद्रता - भोगोपभोग - में पराधीनता - दुर्बलता