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गुण और उत्तर गुण विषयक अतिचारों की शुद्धि हो, वह प्रायश्चित्त तप कहलाता है । प्रायश्चित्त के १० भेद हैं, जिन्हें प्रश्नोत्तरी में व्याख्यायित किया गया है।
२. विनय : गुणवान्, ज्ञानवान् की भक्ति, बहुमान करना, या जिसके द्वारा आत्मा से कर्मरूपी मेल हटाया जाता है, वह विनय है। विनय तप के भी ७ भेद है - १. ज्ञान विनय, २. दर्शन विनय, ३. चारित्र विनय, ४. मन विनय, ५. वचन विनय, ६. काय विनय, ७. उपचार विनय.
३. वेयावच्च : अर्थात् सेवाशुश्रूषा करना । गुरु, तपस्वी, रोगी, वृद्ध, नवदीक्षित, साधु की आहार-पानी-औषधी आदि से सेवा करना, उनके संयम पालन में सहायक बनना, आज्ञापालन से भक्ति-बहुमान करना, वैयावृत्त्य कहलाता है । आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, स्थविर, ग्लान (बीमार), शैक्षक (नवदीक्षित मुनि), साधर्मिक, कुल, गण, संघ, इन दस की यथायोग्य सेवा करना, वैयावृत्त्य तप है।
४. स्वाध्याय : ज्ञान प्राप्ति के लिये अस्वाध्याय काल एवं अनध्याय दिवसों को यलकर मर्यादापूर्वक शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना, स्वाध्याय तप है। इसके भी ५ भेद है -
१) वांचना : पढना और पढाना वांचना कहलाती है। २) पृच्छना : शंका का समाधान करना, पृच्छना कहलाती है । ३) परावर्त्तना : पढे हुए की पुनरावृत्ति करना, परावर्तना कहलाती है।
४) अनुप्रेक्षा : सीखे हुए सूत्र के अर्थ का बार-बार चिंतन-मनन करना, अनुप्रेक्षा है।
५) धर्मकथा : धर्मोपदेश करना धर्मकथा है।
५. ध्यान : एक लक्ष्य पर क्सि को एकाग्र करना ध्यान है । ध्यान के भी ४ भेद हैं -
१) आर्त्तध्यान : अनिष्ट वस्तु के वियोग की तथा इष्ट वस्तु के संयोग की कल्पना से मन में दुःखी-व्यथित होना आर्तध्यान है । अथवा अनिष्ट के संयोग में और इष्ट के वियोग में खिन्न, परेशान, दुःखी होना आर्तध्यान है ।
२) रौद्र ध्यान : हिंसादि दुष्ट आचरण का चिंतन करना, दूसरों को मारने, पीटने, ठगने की भावना रौद्र ध्यान है । श्री नवतत्त्व प्रकरण
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