________________
शब्दार्थ .
अलाभ - अलाभ
पन्ना:- प्रज्ञा रोग - रोग
अन्नाण - अज्ञान तणफासा - तृणस्पर्श सम्मत्तं - सम्यक्त्व मल - मल
इअ - ये सक्कार - सत्कार
बावीस - बाईस परिसहा - परीषह
परिसहा - परीषह हैं।
भावार्थ क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश, अचेल, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शव्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार, प्रज्ञा, अज्ञान, सम्यक्त्व, ये बाईस परीषह है ॥२७-२८॥
. विशेष विवेचन । प्रस्तुत गाथा में २२ परीषहों का वर्णन है।
परीषह : अंगीकार किये हुए धर्ममार्ग में स्थिर रहने और कर्म बन्धनों के विनाशार्थ जो जो स्थिति समभावपूर्वक सहन करने योग्य है, उसे परीषह कहते
१-२. क्षुधा व पिपासा परीषह : भूख तथा प्यास की चाहे कैसी भी वेदना हो, फिर भी अंगीकार की हुई मर्यादा के विरुद्ध सचित्त एवं दोषपूर्ण आहार, पानी आदि न लेते हुए समभावपूर्वक इन वेदनाओं को सहना - वे क्रमशः क्षुधा तथा पिपासा परीषह है।
३-४. शीत व उष्ण परीषह : चाहे कितनी ही कडाके की ठंड हो और चाहे कितनी ही तपाने वाली गर्मी हो तथापि उसके निवारणार्थ किसी भी अकल्प्य वस्तु का सेवन किये बिना और साधनों का उपयोग किये बिना समभाव व शांतिपूर्वक इन वेदनाओं को सहना, क्रमशः शीत व उष्ण परीषह है।
५. देश परीघह : डांस, मच्छर आदि जन्तुओं का उपद्रव होने पर भी खिन्न न होना और न उन जन्तुओं पर द्वेष करना या कष्ट पहुँचाना बल्कि अपनी
------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण