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ईर्यासमिति है।
२. भाषासमिति : आवश्यकता होने पर सत्य-हित-मित तथा निरवद्य भाषा बोलना भाषासमिति है।
३. एषणासमिति : यह समिति मुख्यतया मुनि के होती है। श्रमणाचार के अनुरूप ४२ दोषों को टालते हुए आहारादि ग्रहण करना एषणा समिति
४. आदान समिति : वस्त्र, पात्र, रजोहरण, शय्या, संस्तारक आदि संयम के उपकरण तथा ज्ञानोपकरण आदि को उपयोगपूर्वक प्रमार्जन करके रखना आदान समिति है। इसका दूसरा नाम आदान-भंड-मत्त-निक्खेवणा समिति भी है। आदान-ग्रहण करना, निक्खेवणा – रखना, भंड-मत्त-पात्र-मात्रक आदि को जयणापूर्वक ।
५. उच्चार समिति : अर्थात् उत्सर्ग समिति । स्थण्डिल के दोषों को टालते हुए उत्सर्ग अर्थात् विसर्जन करना । लुघनीति (पेशाब) बडीनीति (मल) धुंक, कफ, अशुद्ध आहारं आदि को निर्जीव स्थान में परठना, त्याग करना, उत्सर्गे समिति कहलाता है । इसका उप्पर नाम उच्चार-प्रस्त्रवण-खेल-जल्ल सिंघाण पारिष्ठापनिका समिति भी है।
गुप्ति : मन - वचन तथा काया की अशुभ प्रवृत्तियों को रोककर शुभ प्रवृत्ति करना, गुप्ति कहलाता है। योगों के व्यापार का गोपन करना, समेटना गुप्ति कहलाता है । इसमें असत्क्रिया का निषेध मुख्य है।
१. मनोगुप्ति : मनको सावद्य (सदोष) विचारों से रोकना, आर्त्तध्यान, रौद्र ध्यान, संरम्भ, समारंभ तथा आरंभ संबंधी संकल्प न करना, धर्म तथा शुक्ल ध्यान ध्याना, मनोगुप्ति है ।
२. वचन गुप्ति : सावध, हिंसक तथा कटु वचन न बोलना, विकथा त्याग करना, मौन रहना, वचन गुप्ति है ।
३. काय गुप्ति : शरीर को सदोष क्रियाओं से रोककर निर्दोष क्रियाओं में जोडना, अशुभ तथा पापकारी प्रवृत्ति का त्याग करना, काय गुप्ति है । ये पांच समिति तथा तीन गुप्ति अष्टप्रवचन माता कही जाती है क्योंकि इन आठों से संवर धर्म रूप पूत्र का पालन-पोषण होता है । ये मुनि के यावज्जीवन तथा श्रावक के सामायिक, पौषध आदि में होती है।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण