________________
१२. अचक्षुदर्शनावरणीय : जिसके द्वारा चक्षु के सिवाय बाकी चार इन्द्रियों तथा मन, इन पांचों अथवा इनमें से किसी एक के दर्शन का आच्छादन हो, वह अचक्षुदर्शनावरणीय है।
१३. अवधिदर्शनावरणीय : जिससे जीव को रूपी द्रव्य के सामान्य धर्म का बोध न हो, वह अवधिदर्शनावरणीय है।
१४. केवलदर्शनावरणीय : जिससे जीव को संपूर्ण जगत के पदार्थों का सामान्य बोध न हो, वह केवलदर्शनावरणीय है।
१५. निद्रा दर्शनावरणीय : जिससे जीव आसानी से जग जाये, ऐसी स्वल्प निद्रा आती है।
१६. निद्रा निद्रा दर्शनावरणीय : जिससे जीव की इतनी घोर निद्रा आये कि बहुत ही कठिनाई से जागृत हो।
१७. प्रचला दर्शनावरणीय : जिससे जीव को खडे-खडे या बैठे-बैठे नींद आ जाय ।
१८. प्रचला प्रचला दर्शनावरणीय : जिससे जीव को चलते-फिरते भी नींद आ जाय ।
१९. स्त्यानद्धि : जिसके उदय से जीव दिन में सोचे हुए कृत्यों को निद्रावस्था के दौरान रात्रि में अंजाम दे दे । प्रथम संघयणवाले जीव को इस नींद में वासुदेव का आधा बल होता है। अन्य सामान्य व्यक्ति का स्वबल ७-८ गुणा अधिक बल होता है ।
२०. नीच गोत्र : जिस कर्म के उदय से जीव को नीच कुल-जातिवंशादि की प्राप्ति हो।
२१. अशाता वेदनीय : जिससे जीव को आधि-व्याधि-उपाधि रूप दुःख का अनुभव हो।
२२. मिथ्यात्व मोहनीय : जिसके उदय से जीव को सुदेव, सुगुरु तथा सुधर्म से विपरीत मार्ग में श्रद्धा हो ।
२३. स्थावर दशक : स्थावरदशक में उन दस प्रकृतियों का समावेश है, जिनका नामोल्लेख २०वीं गाथा मे है। जिस कर्म के कारण जीव चल-फिर न सके, एक ही जगह पर स्थिर रहे, वह स्थावर नाम कर्म है।
सात
-
-
-
-
-
-
८०
श्री नवतत्त्व प्रकरण