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५ सुरदुग - सुरद्विक | १० ति - तीन ___ (देवगति-देवानुपूर्वी) ११ तणूण - शरीरों के ६ पंचिंदि - पंचेन्द्रिय १२ उखंगा - उपांग (अंगोपांग) ७ जाइ - जाति
१३ आइम - आदि अर्थात् पहला ८ पण देहा - पांच शरीर १४ संघयण - संहनन ९ आइ - आदि के (प्रथम के) १५ संठाणा - संस्थान
शब्दार्थ वण्णचउक्त - वर्णचतुष्क निमिण - निर्माण (वर्ण-गंध-रस-स्पर्श) तसदस - संदशक अगुरूलहु - अगुरूलघु (त्रसादि दस प्रत्येक प्रकृतियाँ) परघा - पराघात
। सुर - सुर आयुष्य (देवायुष्य) उसास - श्वासोच्छास '. नर - मनुष्य आयुष्य आयव - आतप
तिरिआउ - तिर्यञ्चायुष्य उज्जो - उद्योत | तित्थयरं - तीर्थंकर सुभखगइ - शुभ खगति (शुभ विहायोगति) '
शब्दार्थ तस - त्रस
सुस्सर - सुस्वर बायर - बादर
आइज्ज - आदेय पज्जत्तं - पर्याप्त
जसं - यश पत्तेयं - प्रत्येक
तसाइ - सादि थिरं - स्थिर
दसगं - दशक सुभं - शुभ
इमं - ये (इस प्रकार) सुभगं - सुभग
होइ - होती है। च - और
भावार्थ शातावेदनीय, उच्चगोत्र, मनुष्यद्विक, देवद्विक, पंचेन्द्रिय जाति, पांच शरीर, प्रथम तीन शरीर के उपांग, प्रथम संहनन तथा संस्थान ॥१५॥
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श्री नवतत्त्व प्रकरण