________________
विशेष विवेचन
पूर्वोक्त गाथाओं में छह द्रव्यों के स्वभाव, लक्षण आदि की मीमांसा की गयी । प्रस्तुत गाथा में इन्हीं छह द्रव्यों की परिणामी आदि द्वारों की अपेक्षा से विचारणा की गयी है ।
१. परिणामी : एक क्रिया से अन्य क्रिया में अथवा एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना परिणाम कहलाता है । धर्मान्तर की प्राप्ति होना परिणाम है। छह द्रव्यों में जीव तथा पुद्गल, ये दो द्रव्य परिणामी हैं । इन दोनों के परिणाम के दस-दस भेद हैं । शेष चार द्रव्य धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा काल अपरिणामी अर्थात स्व-स्वभाव को छोडकर अन्य स्वभाव या धर्म को प्राप्त नहीं होने वाले हैं । .
1
+
२. जीव : केवल जीव द्रव्य ही जीव है । शेष ५ द्रव्य अजीव हैं ।
1
३. मूर्त्त : पुद्गल द्रव्य वर्ण, गंध, रस, स्पर्श सहित होने से (रूपी) मूर्त
है । शेष ५ ( अरूपी) अमूर्त अर्थात् वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रहित है ।
४. सप्रदेशी : षद्रव्य में धर्मास्तिकायादि पांच द्रव्य सप्रदेशी अर्थात् अणुओं के समूह वाले है । काल द्रव्य अप्रदेशी है । यह अणुओं का पिंडरूप नहीं है ।
५. एक : धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय ये तीन द्रव्य एक - एक है । शेष तीनों द्रव्य अनंत अनंत होने से अनेक हैं ।
६. क्षेत्र : जिसमें पदार्थ (द्रव्य) रहे, वह क्षेत्र है और उसमें रहने वाले द्रव्य क्षेत्री है। छह द्रव्यों में आकाशास्तिकाय द्रव्य क्षेत्र है । शेष पांच द्रव्य उसमें रहते हैं, अतः क्षेत्री है ।
७. क्रिया : गति करने वाले द्रव्य सक्रिय तथा गत्यादि क्रिया से रहित द्रव्य अक्रिय कहलाते हैं । जीव और पुद्गल, ये दो द्रव्य क्रियावान् होने से सक्रिय है । धर्मास्तिकाय आदि चार द्रव्य स्थिर स्वभावी होने से अक्रिय है। ८. नित्य : सदाकाल एक ही अवस्था में स्थिर रहने वाला शाश्वत द्रव्य
६२
श्री नवतत्त्व प्रकरण