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प्रकाश करते हैं । जैसे सूर्य का विमान एवं सूर्यकान्तादि रत्न स्वयं शीत है परन्तु प्रकाश उष्ण होता है । आतप नाम कर्म का उदय अग्निकाय के जीवों को नहीं होता बल्कि सूर्यबिम्ब के बाहर पृथ्वीकायिक जीवों को ही होता है।
७. वर्ण : जिस कर्म के उदय से शरीर में कृष्ण, गौर आदि वर्ण (रंग) हो, उसे वर्ण कहते है । यह पांच भेद वाला है - १) कृष्ण, २) नील, ३) लोहित, ४) हारिद्र तथा ५) श्वेत । वर्ण यह भी पुद्गल का लक्षण है, क्योंकि प्रत्येक पुद्गल परमाणु अथवा इसके स्कंध में एकाधिक वर्ण पाये जाते हैं ।
८. गन्ध : घ्राणेन्द्रिय के विषय को गंध कहते है । इसके २ भेद हैं - सुरभिगंध तथा दुरभि गंध । गंध भी पुद्गल द्रव्य का लक्षण है। अन्य किसी भी द्रव्य में गंध का अस्तित्व नहीं होता। एक परमाणु में एक गंध तथा द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों में दो गंध भी यथासंभव होती है।
९. रस : रसनेन्द्रिय के विषय को रस कहते है । इसके ५ भेद हैं - तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल तथा मधुर । प्रत्येक पुद्गल में रस होता है। एक पुद्गल में एक तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध में एक से पांच रस पाये जाते हैं । रस भी पुद्गल का ही लक्षण है ।
१०. स्पर्श : जो स्पर्शनेन्द्रिय का विषय हो, वह स्पर्श कहलाता है। इसके ८ भेद हैं - शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष, लघु-गुरु, मृदु-कर्कश । एक परमाणु में शीत और स्निग्ध अथवा शीत और रूक्ष, इन चार प्रकारों में से २ प्रकार के स्पर्श होते है । सूक्ष्म परिणामी स्कन्धों में शीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष, ये चार स्पर्श तथा बादर स्कन्धों में आठों ही स्पर्श होते हैं ।
"काल का स्वरूप
गाथा
एगा कोडि सत्तसट्ठि, लक्खा सत्तहत्तरी सहस्सा य । दोय सया सोलहिआ, आवलिआ इगमुहत्तंम्मि ॥१२॥
अन्वय इग मुहत्तंम्मि एगा कोडि सत्तसट्ठि लक्खा य सत्तहत्तरी सहस्सा दो सया य सोल अहिया आवलिया ॥१२॥
----- श्री नवतत्त्व प्रकरण
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