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शब्दार्थ समय - समय
भणिओ - कहा गया है। आवली - आवलिका पलिया - पल्योपम मुत्ता - मुहूर्त
सागर - सागरोपम दीहा - दिन
उस्सप्पिणी - उत्सर्पिणी पक्खा - पक्ष
सप्पिणी - अवसर्पिणी मास - मास
कालो - काल वरिसा - वर्ष
य - और
भावार्थ समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, वर्ष, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल कहा गया है ॥१३॥
विशेष विवेचन पूर्वोक्त गाथा में मुहूर्त को स्पष्ट किया गया है परन्तु प्रस्तुत गाथा में व्यवहारिक गणना करने योग्य काल का विवेचन है । जैन दर्शन में काल की व्याख्या अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी पूर्ण तार्किक है।
समय : काल का अत्यंत सूक्ष्म अंश, जिसका विभाग न हो सके अथवा जिसके भाग की कल्पना केवली भगवन्त के ज्ञान द्वारा भी न हो सके, ऐसे निर्विभाज्य अंश को समय कहते है। आवलिका के असंख्यातवें भाग को भी समय कहते है । जैसे, पुद्गल द्रव्य का सूक्ष्म विभाग परमाणु है, ठीक उसी प्रकार काल का सूक्ष्म विभाग समय है। आँख के एक पलकारे में असंख्यात समय व्यतीत हो जाते हैं । जैसे अति जीर्ण वस्त्र को फाडने पर एक तंतु से दूसरे तंतु के फटने में जो समय लगता है या कमल के १०० पत्रों को तीक्ष्ण शस्त्र से एक साथ बींधने पर एक पत्र से दूसरे पत्र को बींधने में जितना समय लगता है, वह भी असंख्यात समय कहलाता है। इस प्रकार जैनदर्शन में समय
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--------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण