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शब्दार्थ अवगाहो - अवकाश (देने के स्वभाववाला) आगासं - आकाशास्तिकाय । देस - देश . पुग्गल - पुद्गलों (और) पएसा - प्रदेश जीवाण - जीवों को परमाणु - परमाणु पुग्गला - पुद्गल
चेव - निश्चय ही चउहा - चार प्रकार का है नायव्वा - जानने चाहिए। खंधा - स्कंध
भावार्थ ...। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा काल, ये पांच अजीव (द्रव्य) हैं।
चलने में सहायता देने के स्वभाव वाला धर्मास्तिकाय है तथा ठहरने में सहायता देने के स्वभाववाला अधर्मास्तिकाय है ॥९॥
पुद्गलों तथा जीवों को अवकाश या स्थान देने के स्वभाव वाला आकाशास्तिकाय है। स्कंध, देश, प्रदेश तथा परमाणु, ये चार पुद्गल के. भेद जानने चाहिए ॥१०॥
विशेष विवेचन धर्मास्तिकाय : जो जीव और पुद्गल को चलने में सहायता करे । अधर्मास्तिकाय : जो जीव और पुद्गल को रूकने में सहायता करे । आकाशास्तिकाय : जो पुद्गल तथा जीवों को स्थान या अवकाश दे । पुद्गलास्तिकाय : जो प्रतिसमय पूरण (मिलना), गलन (बिखरना) के स्वभाव
वाला हो, वह पुद्गल कहलाता है । काल : जो द्रव्यों के परिणमन में सहकारी हो अर्थात् नये को पुराना और पुराने
को नष्ट करे, उसे काल कहते है।
उपरोक्त पांचो द्रव्य अजीव हैं । उसमें जीवास्तिकाय को सम्मिलित करने पर षड्द्रव्य होते हैं । इनमें से केवल जीव द्रव्य ही चैतन्यलक्षण से युक्त है। जीव द्रव्य की गति, स्थिति, अवकाश आदि में अजीव द्रव्य उदासीन रूप से
श्री नवतत्त्व प्रकरण