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सहायक बनते है।
धर्म-अधर्म-आकाश-पुद्गल तथा जीव इन पांचों के साथ अस्तिकाय शब्द लगा हुआ होने से दर्शन ग्रंथों में इन्हें पंचास्तिकाय भी कहा जाता है। जो द्रव्य प्रदेशों का काय (समूह) रुप हो, वह अस्तिकाय है। काल को अस्तिकाय नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसमें प्रदेश समूह का अभाव है। वह केवल एक वर्तमान समय रूप ही है। तथा निश्चय से वर्तना लक्षण वाला एवं व्यवहार से भूत-भविष्य रूप भेद वाला है।
छह द्रव्यों में द्रव्यादि वर्गणा द्रव्य का नाम द्रव्य से क्षेत्र से काल से भाव से गुण से संस्थान से १) धर्मास्तिकाय एक | १४ | अनादि | अरूपी | गति में | लोकाकाश राजलोक | अनंत
सहायक व्यापक
जड
स्वभाव | २) अधर्मास्तिकाय एक १४ | अनादि | अरूपी स्थिति में | लोकाकाश राजलोक | अनंत,
सहायक व्यापक
जड
स्वभाव ३) आकाशास्तिकाय| एक लोकालोक अनादि | अरूपी अवकाश | घनगोलक व्यापक | अनंत
दायक
स्वभाव ४) पुद्गलास्तिकाय | अनंत १४ । अनादि | रूपी पूरण- | मंडलादि राजलोक | अनंत
गलन व्यापक
जड
स्वभाव ५) जीवास्तिकाय | अनंत | १४ | अनादि | अरूपी ज्ञान-दर्शन देहाकृति राजलोक | अनंत
चैतन्य व्यापक
उपयोगादि ६) काल | अनंत ढाई द्वीप | अनादि | अरूपी | वर्तना
अनंत
श्री नवतत्त्व प्रकरण