________________ नैषधीयचरिते ब्रह्माख्य ज्योति का साक्षात्कार कर रही हो। इस तरह यहाँ प्रस्तुत नगरी पर विशेषषसाम्य से अप्रस्तुत योगिनी का व्यवहार-समारोप होने से समासोक्ति है। अतिशय सम्पत्ति का वर्णन करने से उदातालंकार यथावत् चला आ रहा है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। विललास जलाशयोदरे क्वचन द्यौरनुबिम्बितेव या / / परिघाकपटस्फुटस्फुरत्प्रतिबिम्बानवलंबिताम्बुनि // 79 // अन्वयः-या क्वचन परिखा.''ताम्बुनि जलाशथोदरे अनुबिम्बिता द्यौः इव विललास / टीका-या कुण्डिननगरी क्वचन कुत्रचित् परिखा प्राचीरं परितो जल-पूषों गर्त इत्यर्थः तस्याः कपटेन व्याजेन ( 10 तत्पु० ) स्फुट व्यक्तं यथा स्यात्तथा स्फुरन् भ्राजमानं ( सुप्सुपेति समासः ) यत् प्रतिबिम्ब प्रतिच्छाया ( कर्मधा० ) तेन अनवलम्बितम् अनाश्रितम् असम्बद्धमित्यर्थः (तृ० तत्पु०) अम्बु जलम् ( कर्मधा० ) यस्मिन् तयाभूते (ब० व्रो०) जलस्य सलिलस्य आशयस्य आधारस्य (10 तत्पु० ) उदरे मध्ये (10 तत्पु० ) अनुबिम्बिता प्रतिविम्बिता द्यौः स्वर्ग इव विललास शोभते स्म / अयं माव: परिखा परिखा न, अपितु कश्चिन्महान् जलाशयोऽस्ति यस्य मध्ये कुण्डिननगरी प्रति. विम्बिता स्वर्गपुरीव दृश्यते स्म / स्वर्गप्रतिबिम्बनादवशिष्टो जल-भाग एव परिखा // 79 // व्याकरण-परिखा ( प्राचीरम् ) परितः खन्यते इति परि + खन्+डः+टाप / प्रतिबिम्वः प्रतिगतो विम्बमिति ( प्रादि तत्पु० ) / अनुबिम्बिता अनुगतो बिम्बमिति अनुबिम्बः (प्रादि तत्पु० ) अनुबिम्बं अनुबिम्बयुक्तं करोतीति ( 'मुखादयो वृत्ति विषये तदति वर्तन्ते ) अनुबिम्बयति नामधातु बनाकर निष्ठा में क्त। अनुवाद-जो ( कुण्डिन नगरी) परिखा-परकोटे के पीछे की जल-पूर्ण खाई के बहाने स्पष्ट चमक रहे प्रतिबिम्ब से अछूते पड़े जल वाले किसी जलाशय के बीच प्रतिबिम्बित स्वर्गपुरी-जैसी छग रही थी // 79 // टिप्पणी-यहाँ कवि कुण्डिननगरी पर किसी जलाशय में प्रतिबिम्बित स्वगपुरी की कल्पना कर रहा है। हम देखते हैं कि जिस जगह प्रतिबिम्ब पड़ता है, वहाँ जल नहीं दीखता, प्रतिबिम्बित वस्तु ही दीखती है। परिखा जलाशय का वह भाग है, जहाँ प्रातबिम्ब नहीं पड़ा। इस तरह यहाँ परिखा का 'कपट' शब्द से प्रतिषेध करके उस पर जलाशय के अवशिष्ट जल की स्थापना करने से अपहति है, जो 'धौरिव' इस उत्प्रेक्षा का अङ्ग बनी हुई है, इसलिए इन दोनों का अङ्गाङ्गिभाव संकर है। इससे नगरी स्वर्गपुरी-सदृश है-यह उपमा ध्वनि निकलती है। शब्दालंकारों में 'बिम्बि' "बिम्बा' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। व्रजते दिवि यदगृहावलीचलचेलाञ्चलदण्डताडनाः। ज्यतरवरुणाय विश्रमं सृजते हेलिहयालिकालनाम् // 8 // . अन्वयः-यद्गृहा.. ताडनाः दिवि व्रजते हेलियालि-कालनाम् सृजते अरुणाय विश्नमम् बवरन् / टीका-यस्या नगर्या यानि गृहाणि भवनानि तेषां या यावलो श्रेषो ( उमयत्र 10 तत्पु०)